धर्म एवं दर्शन >> अमृत द्वार अमृत द्वारओशो
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ओशो की प्रेरणात्मक कहानियाँ
मैं कहना चाहता हूं, मनुष्य एक व्यर्थ वासना नहीं है, यूजलेस पैशन नहीं है। मैं कहना चाहता हूं, जीवन एक अर्थहीन कथा नहीं है। मैं कहना चाहता हूं, जीवन एक सार्थक आनंद है, लेकिन केवल उन्हीं के लिए जो जीवन की पहेली को सुलझाने की हिम्मत दिखाते हैं। हम सब तो एस्केपिस्ट हैं। हम सब तो जीवन की तरफ पीठ करके भागने वाले लोग हैं। जो जीवन में भागते हैं, अगर जीवन उन्हें आनंद न हो सके, तो इसमें दोष किसका, कसूर किसका? जीवन को आमने-सामने लेना है, जीवन का एक एनकाउंटर करना है। जीवन से मुठभेड़ लेनी है, जीवन का सामना करना है तो जीवन का अर्थ खुलना शुरू हो जाता है। जो जीवन को आमने-सामने खड़े होकर देखने की हिम्मत जुटाता है वही व्यक्ति इस समस्या को सुलझाने में समर्थ हो पाता है कि मैं कौन हूं।
लेकिन आदमी ने इस समस्या से बचने के बहुत उपाय खोज लिए हैं--हल करने के नहीं, बचने के लिए। इस समस्या को सुलझा लेने के नहीं, समस्या से भागने के। हमारी शायद आदत यह हो गई है कि हम हर प्रश्न समस्या से भागने के लिए कोई रास्ता खोज लेते हैं। अगर घर में कोई बीमार पड़ा है, अगर दिवाला निकल गया है, अगर धन की तंगी आ गयी है, अगर चितिंत हो उठा है तो कोई आदमी संगीत सुनकर अपने को भुला लेता है। कोई सिनेमा में बैठकर अपने को भुला लेता है। कोई शराब पीकर अपने को भुला लेता है। लेकिन भुलाने से कोई समस्या हल होती है? भुलाने से सिर्फ समस्या को हल करने की हमारी क्षमता और शक्ति क्षीण होती है। समस्या तो वहीं की वहीं खड़ी रहती है। हम और कमजोर वापस लौटते हैं। जितनी देर हम किसी समस्या को भुलाने की कोशिश करते हैं उतनी देर में हम और कमजोर हो जाते हैं। समस्या का सामना करने की हमारी सामर्थ्य शक्ति कम हो जाती है। जीवन की पूरी समस्या के साथ हम यही व्यवहार कर रहे हैं जो हम छोटी समस्याओं के साथ करते हैं। आदमी ने स्वयं को भूल जाने के लिए सब तरह के विकास कर लिए हैं। सारी शराबें, सारे मादक द्रव्य, सारी वे खोजें, जिन्हें आदमी मनोरंजन कहता है, वे सारी खोजें जीवन की वास्तविक समस्या को भुलाने के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं करती।
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