धर्म एवं दर्शन >> अमृत द्वार अमृत द्वारओशो
|
10 पाठकों को प्रिय 353 पाठक हैं |
ओशो की प्रेरणात्मक कहानियाँ
बुद्ध दो तरह के प्रयोग करते थे ध्यान का। एक तो वह कहते थे बैठकर ध्यान कर और एक को वह कहते थे चलते हुए ध्यान। वह भिक्षुओं को कहते थे एक घंटा बैठकर ध्यान करो फिर एक घंटा चलते हुए ध्यान करो। बैठकर एक बात है ध्यान की ज्यादा आसान है। चलकर ध्यान थोड़ा कठिन है। एक्शन के साथ क्रिया हो रही है और ध्यान। लेकिन युवक के लिए चलकर ध्यान करना आसान है बजाय बैठकर। तो मेरी दृष्टि यह है कि मेरी मिलेट्री ट्रेनिंग युवक की हो और उसकी मिलेट्री ट्रेनिंग का अनिवार्य सेटल हिस्सा मेडिटेशन हो। वह चले, खेले, दौडे़।
उन्होंने जापान में एक व्यवस्था खोज ली थी। जापान में जैसे यहाँ क्षत्रिय होते थे वैसे वहाँ समुराई जापान में क्षत्रियों का वर्ग था। उन्होंने ध्यान को तलवार बाजी के साथ जोड़ रखा था। तलवार चलाना सिखाते और ध्यान के साथ तलवार चलाओ ध्यानपूर्वक। तो समुराई दो काम कर लेता था। वह तलवार चलाना सीखते सीखते ध्यानस्थ होना भी जान जाता था। और युद्ध के मैदान में समुराई का कोई मुकाबला नहीं था दुनिया में क्योंकि वह जितना शक्तिशाली होता था, जितना मौन होता था, जितना निर्विचार होकर लड़ता था उतना दूसरा आदमी तो निर्विचार भी नहीं था शांत भी नहीं था, वह पच्चीस बातें भी सोच रहा था। समुराई से जीतना मुश्किल था। और धीरे-धीरे तो यह हालत पैदा हुई जापान में कि अगर दो समुराई में कभी तलवार बाजी हो जाए तो कोई नहीं जीत पाया था जीतना ही मुश्किल था किसी का। क्योंकि वह दोनों ही उतने शांति से इतना मौन, इतने मैडीटेटिविली लड़ते थे कि मुश्किल मामला था कि कोई जी जाता।
|