धर्म एवं दर्शन >> अमृत द्वार अमृत द्वारओशो
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ओशो की प्रेरणात्मक कहानियाँ
ठीक उस तरह की कोई व्यवस्था मिलेट्री ट्रेनिंग के साथ युवकों के लिए खोजनी जरूरी है। और एक संगठन चाहिए युवकों का सारे देश में जो मिलेट्री के ढंग पर आयोजित हो लेकिन धार्मिक शिक्षण जिसका केंद्र हो। और धार्मिक शिक्षण से मेरा मतलब, ध्यान का शिक्षण। धार्मिक शिक्षण से मेरा मतलब नहीं कि गीता पढ़ाओ उनको, धार्मिक शिक्षण से मेरा मतलब नहीं है कि उनको बैठकर पाठ रटवाओ कि सत्य बोलना अच्छा है। इससे प्रयोजन मेरा नहीं है। धार्मिक शिक्षण का मतलब ध्यान का शिक्षण है। इधर मेरे मन में एक योजना आती है कि एक युवक क्रांति दल पूरे मुल्क में खड़ा किया जाए। उसकी सारी प्रवृत्ति ठीक सैनिक प्रशिक्षण की होगी, लेकिन उसके केंद्र में ध्यान होगा और ध्यान और कर्म को अगर हम जोड़ दें तो हम युवक को धार्मिक बना सकते हैं, अन्यथा नहीं। अभी तक युवक धार्मिक नहीं बन सका क्योंकि ध्यान था। निष्क्रिय वृद्धों के लिए और कर्म था युवकों के लिए। कर्म और ध्यान के बीच कोई सेतु नहीं है इधर मैं सोचता हूं कि वह सेतु होना चाहिए। बचपन से साहस, युवा होने पर ध्यान और कर्म, इन दोनों का संयुक्त रूप जोड़ा जा सकते तो हम एक व्यक्तित्व बना सकते हैं, जिसको धार्मिक युवक कह सकते हैं। और वैसे युवक में क्वालिटी अपने आप पैदा होंगी जो आप लाख कोशिश करके पैदा नहीं कर सकते हैं। जैसे शांत व्यक्ति में अनिवार्य रूपेण प्रेम पैदा होता है, अशांत व्यक्ति में कभी प्रेम पैदा नहीं हो सकता है। क्योंकि अशांत व्यक्ति इतना भीतर परेशान है कि प्रेम करने का सवाल कहाँ है? वह घृणा कर सकता है, क्रोध कर सकता है द्वेष कर सकता है या ईर्ष्या कर सकता है लेकिन प्रेम नहीं कर सकता है। और अगर युवक प्रेम करने में समर्थ हो तो आज युवक की जितनी तोड़ फोड़ दिखाई पड़ रही है वह एकदम विलीन हो जाएगी। एकदम विलीन हो जाएगी। और आप लाख समझाए उसको कि तुम बस मत जलाओ, तुम क्लास का फर्नीचर मत तोड़ो। आदमी सोच ही नहीं पा रहा है, वह फर्नीचर तोड़ रहा है, बस जला रहा है, एक साइकिक मामला है उसके भीतर। उसके भीतर चित्त ऐसे हैं कि सिवाय तोड़ने के उसे कुछ सूझ ही नहीं रहा है। अगर आप बस न जलाने देंगे तो और खतरनाक चीजें तोड़ेगा वह।
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