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धर्म एवं दर्शन >> असंभव क्रांति

असंभव क्रांति

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :405
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9551
आईएसबीएन :9781613014509

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माथेराम में दिये गये प्रवचन

अमरीका शायद सभ्यता में अग्रणी है, इसीलिए सर्वाधिक पागल वहाँ होते हैं। और एक न एक दिन यह बात जब समझ में आ जाएगी कि सभ्यता और पागलों का कोई अनिवार्य संबंध है तो आप पक्का समझ लें, जिस मुल्क को पूरा सभ्य होना हो, उसे पूरा पागल हो जाना पड़ेगा। या अगर कोई कौम बिलकुल पागल हो जाए तो समझ लेना कि वह सभ्यता के शिखर पर पहुँच गई है।

यह जो, अगर हम चित्त की बदलाहट की कोई गलत कीमिया, कोई गलत केमिस्ट्री पकड़ लेंगे तो स्वभावतः चित्त विकृत हो जाएगा।

आज की सुबह मुझे स्वस्थ चित्त के संबंध में ही थोड़ी बात करनी है। कल मैंने युवा, ताजा, नया चित्त होना चाहिए इस संबंध में आपसे कुछ कहा था। दूसरे दिन की सुबह, आज मैं, स्वस्थ-चित्त होना चाहिए, इस संबंध में कुछ कहना चाहता हूँ। क्योंकि स्वस्थ चित्त न हो तो सत्य की कोई अनुभूति संभव नहीं है।

लेकिन स्वस्थ चित्त होना चाहिए, इसे समझने के लिए, यह समझ लेना जरूरी है कि यह चित्त अस्वस्थ कैसे हो गया है? यह अनहेल्दी माइंड पैदा कैसे हो गया यह आदमी का चित्त इतना ज्वर-ग्रस्त, इतना विकृत इतना कुरूप कैसे हो गया इतना अग्ली कैसे हो गया क्या बीमारी इस चित्त को लग गई है?

इस चित्त को अंधकार को दूर करने की बीमारी लग गई है। एक बीमारी तो है अंधकार को दूर करने की। और जब यह अंधकार दूर नहीं होता--जिसे हम बुरा कहते हैं, जिसे हम पाप कहते हैं, जिसे हम अनीति कहते हैं--जब वह दूर नहीं होती तो फिर क्या करे आदमी? फिर दो ही रास्ते हैं--या तो पागल हो जाए, या पाखंडी हो जाए।

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