धर्म एवं दर्शन >> असंभव क्रांति असंभव क्रांतिओशो
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माथेराम में दिये गये प्रवचन
फिर क्या करे?
तीसरा रास्ता भी है एक। और वह यह कि वह किन्हीं आदर्शों की कल्पना में जो है उसे भूल जाए, एक एस्केप ले ले, एक पलायन ले ले। हिंसक आदमी है, वह अहिंसा का आदर्श बना ले और अहिंसा की योजना और कल्पना में लीन हो जाए और हिंसा को भूल जाए। क्रोधी आदमी है, वह क्षमा का आदर्श बना ले, क्षमा की योजना में लग जाए कि कल मैं क्षमाशील हो जाऊंगा। और कल की इस योजना में आज जो क्रोध है, उसे भूल जाएं।
यह तीसरा विकल्प भी मनुष्य के चित्त को अस्वस्थ करता है। क्योंकि तब उसके आज और कल में एक तनाव, एक टेंशन पैदा हो जाता है। वह कल की कल्पना में जीने लगता है और असलियत में जीता है आज। जो आदमी कल अहिंसक होने का विचार कर रहा है कि मैं कोशिश करके कल अहिंसक हो जाऊंगा, प्रेमपूर्ण हो जाऊंगा, क्षमाशील हो जाऊंगा, वह आज क्रोधी है, हिंसक है। और हिंसक आदमी अहिंसक बनने की कोशिश भी करेगा, उस कोशिश में भी हिंसा मौजूद रहेगी।
इसीलिए तथाकथित अहिंसक साधु-संन्यासी, साधक इतनी गहरी हिंसा में संलग्न होते हैं, जिसका कोई हिसाब नहीं। यह जरूर बात सच है कि वे हिंसा दूसरे पर न करके अपने पर ही करते हैं। हिंसा की धारा वे अपने पर ही लोटा लेते हैं। वे खुद के ही विनाश में, खुद के ही डिस्ट्रैक्शन में सलग्न हो जाते हैं। और किस-किस भांति वे अपने को पीड़ा देने लगते हैं, और उन्हें खयाल भी नहीं होता कि यह सब हिंसा है। लेकिन वे अहिंसा की साधना के लिए यह सब कर रहे हैं।
हिंसक आदमी अहिंसक हो कैसे सकता है वह जो कुछ भी करेगा उसमें हिंसा होगी। अहिंसा की साधना भी करेगा तो हिंसा होगी। उसका माइंड तो वायलेंट है, वह तो हिंसक है। इसलिए जो भी वह मन करेगा, उसमे हिंसा होगी। क्रोधी आदमी प्रेम की तैयारी करेगा तो उसमें भी क्रोध होगा। बातें प्रेम की होंगी, पीछे क्रोध होगा।
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