धर्म एवं दर्शन >> असंभव क्रांति असंभव क्रांतिओशो
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माथेराम में दिये गये प्रवचन
फिर क्या करेंगे?
फिर कुछ भी नहीं करेंगे। चुपचाप बैठे रहेंगे। जस्ट सिटिंग, कुछ भी नहीं करना है।
वह, जापान में तो ध्यान के लिए कहते हैं--झाझेन। और झाझेन का मतलब होता है जस्ट सिटिंग, बस खाली बैठे रहना।
एक बहुत बड़ा आश्रम था
जापान में। और जापान का बादशाह उस आश्रम को देखने गया। कोई हजार भिक्षु उस
आश्रम में रहते थे। आश्रम का जो प्रधान था भिक्षु, उसने बादशाह को सभी जगह
दिखलाईं। जाकर दिखलाया एक-एक झोपड़ा--यहाँ भिक्षु स्नान करते हैं, यहाँ
भोजन करते हैं, यहाँ अध्ययन करते हैं। बीच में एक विशाल भवन था--राजा
बार-बार पूछने लगा और वहाँ क्या करते हैं- भिक्षु उसकी बात सुनकर चुप रह
जाता था। राजा बहुत हैरान हुआ। बाथरूम, पाखाने सब बतलाए। लेकिन वह जो
विशाल भवन था, जो देखने जैसा लगता था, उसकी वह भिक्षु बात भी नहीं करता
था।
आखिर राजा के विदा का वक्त आ गया। द्वार पर लौट आया, अभी वह भवन नहीं दिखलाया गया था। राजा ने कहा, या तो मैं पागल हूँ, या तुम। जिसे मैं देखने आया था, वह भवन तुम दिखलाते नहीं। और फिजूल के झोपड़े मुझे दिखलाते फिरे। अब मैं जा रहा हूँ। क्या मैं पूछ सकता हूँ, वहाँ क्या करते हो?
उस भिक्षु ने कहा, तुम्हारे इस पूछने के कारण ही मैं बताने में असमर्थ हो गया। वहाँ हम कुछ नहीं करते। वह हमारा ध्यान का कक्ष है। वहाँ हम कुछ भी नहीं करते। तुम बार-बार पूछते हो, वहाँ क्या करते हो? तो मैं वे झोपड़े तुमको बताता रहा, जहाँ हम कुछ करते हैं। कहाँ स्नान करते हैं, कहाँ भोजन करते हैं। इस भवन में हम कुछ भी नहीं करते। तो अब मैं कैसे बताऊं कि हम वहाँ क्या करते हैं- इसलिए मैं ले नहीं गया। मैं समझ गया कि यह करने की भाषा समझता है, न करने की भाषा समझेगा नहीं। इसलिए मैंने उस भवन को छोड़ दिया। वहाँ हम कुछ भी नहीं करते। वहाँ तो हम बस बैठ जाते हैं। कुछ भी नहीं करते।
तो यहाँ भी हम बस बैठ जाएंगे और कुछ भी नहीं करेंगे। आवाजें सुनाई पड़ेगी, हवाएं पत्तों को हिलाएंगी, वृक्षों से आवाज होगी, उस आवाज को चुपचाप सुनते रहेंगे।
माथेरान, दिनांक 20-10-67, सुबह
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