धर्म एवं दर्शन >> असंभव क्रांति असंभव क्रांतिओशो
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माथेराम में दिये गये प्रवचन
एक मित्र ने पूछा है। उन्होंने कहा है कि वे मुझे प्रेम से भरा हुआ व्यक्ति समझते हैं। लेकिन मैं किन्हीं बातों के विरोध में इतनी कड़वी, इतनी तीखी भाषा का उपयोग कर देता हूँ, इससे उन्हें चोट पहुँच जाती है, दुःख हो जाता है। तो उन्होंने चाहा है कि मैं ऐसी भाषा का उपयोग करूं, जो किसी को चोट न पहुँचाए। थोडी कम कठोर भाषा में सत्यों के संबंध में कहूँ।
उनकी बात तो ठीक है। लेकिन मुझे तो ऐसा लगता है, इतनी कठोर भाषा में कहे जाने पर भी मुश्किल से ही किसी के मन तक वह पहुँचती हो। और मधुर भाषा में कहे जाने पर शायद वह आपकी नींद में सुनाई भी न पड़े।
जिसे की नींद तोड़नी हो, उसे जोर से झकझोरना पड़ता है, झकझोरने की इच्छा नहीं होती, क्योंकि झकझोरने में क्या रस है? लेकिन नींद तोड़ना बिना झकझोरे संभव नहीं होता। और कई बार तो हमारे चित्त की जड़ता इतनी गहरी हो जाती है कि बिना चोट पहुँचाए, वहाँ कोई खबर ही नहीं पहुँचती।
वे ठीक कहते हैं, मेरे हृदय में चोट पहुँचाने का किसी को भी कोई कारण नहीं है, कोई प्रयोजन भी नहीं है। लेकिन मेरा प्रेम ही मुझसे कहता है कि ऐसी जरूरते हैं कि चोट पहुँचाई जाए।
यूरोप के एक बहुत बड़े चिकित्सक, केनिथ वाकर ने एक छोटी सी किताब लिखी है। और उस किताब को जार्ज गुरजिएफ को समर्पित किया है। और डेडीकेशन में, समर्पण में लिखा है--टु दि डिस्टर्बर आफ माइ स्लीप। जार्ज गुरजिएफ को समर्पित किया है, लिखा है—मेरी नींद को तोड़ देने वाले जार्ज गुरजिएफ को।
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