धर्म एवं दर्शन >> असंभव क्रांति असंभव क्रांतिओशो
|
5 पाठकों को प्रिय 434 पाठक हैं |
माथेराम में दिये गये प्रवचन
किसी ने वाकर को पूछा कि नींद जब किसी ने तोड़ी होगी तो बड़ी चोट पहुँची होगी। तो उसने कहा, गुरजिएफ पर जितना क्रोध मुझे जीवन में आया था पहली बार, उतना किसी और पर नहीं आया। लेकिन वही आदमी मेरी नींद को तोड़ने वाला भी बन गया। और तब मैंने पीछे जाना कि उसने जो शाक, उसने जो धक्का मुझे दिया था, वह कितना प्रेमपूर्ण था। अगर वह, वह धक्का न देता तो शायद मैं जागता भी नहीं। यह उसकी दया थी कि उसने धक्का दिया और अब मैं अत्यंत आदर से स्मरण करता हूँ उसका कि उसने मेरी नींद तोड़ दी।
कोई भी नीद तोड़ने वाले को कभी पसंद नहीं करता है। आप सो रहे हो गहरी नींद में और सुबह चार बजे कोई आपको जगाने लगे, तो मन को बड़ा गुस्सा आता है। मन शायद नींद पसंद करता है। तो आप अगर उस जगाने वाले को कहें कि इस तरह जगाए कि मुझे धक्का न लगे। मेरी नींद खराब न हो, इस तरह जगाएं। तो वह कहेगा, फिर जगाना भी नहीं हो सकता है।
तो आप ठीक कहते हैं, मेरे शब्द कुछ कठोर हो सकते हैं। लेकिन मेरी समझ में अभी वे इतने कठोर नहीं हैं, जितने होने चाहिए। वे थोड़े और कठोर होने चाहिए। क्योंकि आदमी की नींद बहुत गहरी है, हजारों वर्ष की है। अगर चोट पहुँचे तो चिंतन शुरू होता है, विचार शुरू होता है। हम फिर से पुनर्विचार करने को तैयार होते हैं।
इस देश में हजारों वर्ष से हमने चोट पहुँचानी ही बंद कर दी मस्तिष्क को, उसकी वजह से हम एक सोई हुई कौम हो गए हैं। हमारा कोई भला आदमी कठोर शब्दों का उपयोग नहीं करता। मीठे-मीठे शब्दों का उपयोग करता है। वे मीठे शब्द नींद में लोरियां बन जाते हैं और सोने में सहयोगी हो जाते हैं।
|