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धर्म एवं दर्शन >> असंभव क्रांति

असंभव क्रांति

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :405
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9551
आईएसबीएन :9781613014509

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माथेराम में दिये गये प्रवचन

इस देश को, इस देश की सोई हुई चेतना को तो अब उन लोगों की जरूरत है, जो बहुत बेरहमी से आपरेशन करने को तैयार हों--बहुत बेदर्दी से, बहुत सख्ती से। इस मुल्क के कुछ घावों को, कुछ पीडाओं को, कुछ बीमारियों को दूर करने के लिए तैयार होना जरूरी है।

अगर आपमें से किसी को भी थोड़ी चोट पहुँच जाती हो तो मैं बहुत खुश हूँ। आप कृपा करके और थोडी ज्यादा चोट मैं पहुँचा सकूं, ऐसी परमात्मा से आपको प्रार्थना करनी चाहिए।

प्रेम चोट पहुँचाने से नहीं डरता है। बल्कि प्रेम ही अकेला है, जो चोट पहुँचाने की हिम्मत करता है। प्रेम यह देखता जरूर है कि चोट फायदा करेगी या नुकसान। चोट पहुँचाने से प्रेम कभी नहीं डरता है। लेकिन प्रेम यह जरूर देखता है कि चोट फायदा करेगी या नुकसान।

अगर चोट न पहुँचाने से हानि होती हो तो प्रेम जरूर चोट पहुँचाता है। और उनका प्रेम कच्चा होगा, जो चोट पहुँचाने से डर जाते हो।

मुझे तो ऐसा ही मालूम पड़ता है कि इस जमीन पर जिन थोड़े से लोगों ने मनुष्य जाति के चिंतन को, चित्त को चोटें पहुँचाई हैं, झकझोर दिया है, हिला दिया है, वे ही थोड़े से लोग मनुष्य को आगे गतिमान करने में सहयोगी और साथी हुए।

धर्म कोई सांत्वना की बात नहीं है, धर्म एक क्रांति है। धर्म एक कंसोलेशन नहीं है, एक रेव्यूल्यूशन है। और हम सारे लोग तो धर्म-मंदिरों में, संन्यासियों और साधुओं के पास, संत्सग में सांत्वना पाने के लिए जाते हैं। वहाँ तो हम जाते हैं कि हमारी नींद और अच्छी तरह से आए, इसकी वे कोई दवा दे दें। हम संतोष से भर जाएं, इसकी कोशिश करें।

लेकिन आपको पता नहीं है, सांत्वना, संतोष और कंसोलेशन जीवन की गति में सबसे बड़ी बाधाए हैं।

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