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धर्म एवं दर्शन >> असंभव क्रांति

असंभव क्रांति

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :405
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9551
आईएसबीएन :9781613014509

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माथेराम में दिये गये प्रवचन

हालत ऐसी है कि आपके सामने सड़क पर सांप लेटा हुआ है, लेकिन आप अपने सामने देख ही नहीं रहे। आप दस मील दूर आकाश की तरफ देख रहे हैं, एक आदर्श की तरफ और चले जा रहे हैं। आदर्श की तरफ देख रहे है और चले जा रहे हैं। और सांप नीचे पड़ा है, जो आपकी जिंदगी को खा जाएगा, उसे आपके आदर्शों का कोई पता नहीं है।

मैं आपसे कह रहा हूँ, दस मील दूर आकाश की तरफ न देखें। कदमों में, नीचे, सामने देखें, जो आप हैं, जहाँ आप हैं। तो अगर साप आपको दिखाई पड़ जाएगा--यह तथ्य है तो आप कुछ करेंगे। और वह हो जाएगा आपके भीतर--आप शायद छलांग लगाकर सांप से अलग हो जाएंगे। लेकिन आप दस मील दूर देख रहे हैं, गड्ढे पैर के पास हैं।

एक ज्योतिषी था यूनान में, जो आकाश के तारों के संबंध में खोजबीन किया करता था। वह एक सांझ आकाश के तारे देखते हुए चला जा रहा था और एक गड्ढे में गिर पड़ा। एक बूढ़ी औरत, जिसने उसे निकाला, उसने कहा, बेटा। मैंने सुना है, तुम तारों के संबंध में बहुत जानते हो लेकिन मैं तुमसे एक प्रार्थना करती हूँ, तारों के संबंध में तुम क्या जानते होंगे, जब रास्तो के गड्ढों के संबंध में नहीं जानते। तो मेरी एक प्रार्थना है, तारे फिर जान लेना, रास्ते के गड्ढे पहले जानना जरूरी है। आकाश के तारों की जानकारी तुम्हें होगी भी कैसे, जब पैर के नीचे के गड्ढे भी तुम्हें दिखाई नहीं पड़ते। तुम्हारा ज्योतिष सब बकवास होगा।

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