लोगों की राय

धर्म एवं दर्शन >> असंभव क्रांति

असंभव क्रांति

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :405
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9551
आईएसबीएन :9781613014509

Like this Hindi book 5 पाठकों को प्रिय

434 पाठक हैं

माथेराम में दिये गये प्रवचन

मनुष्य को, जो साधक है, अपने मन को एक प्रयोगशाला बनानी है। और वहाँ निरीक्षण की सारी शक्ति को ले जाकर देखना है कि मन में क्या हो रहा है, मन क्या है यह मन की प्रोसेस क्या है, यह मन की प्रक्रिया क्या है?

आपके मन में क्रोध उठता है। कभी आपने एकांत कोने में बैठकर देखने की कोशिश की है कि क्या है यह क्रोध, नहीं। आपने दो काम किए होंगे। या तो क्रोध उठा तो जिस पर उठा, उस पर आप टूट पड़े होंगे। और या अगर आप धार्मिक और अच्छे आदमी हैं तो आप क्रोध को पी गए होंगे। बस, ये दो काम किए गए हैं। दोनों ही काम फिजूल हैं।

क्रोध में किसी के ऊपर टूट पड़ने से क्रोध नहीं जाना जा सकता है। क्रोध को पी जाने से भी क्रोध नहीं जाना जा सकता। दोनों ही स्थितियों में निरीक्षण नहीं होता। निरीक्षण का तो अर्थ है। क्रोध उठे, एक बड़ा अवसर आ गया। बहुमूल्य, खुद की शक्ति को जानने का एक कीमती क्षण आ गया। सामान्यतया क्रोध सोया रहता है, अब वह जाग गया। उससे पहचान हो सकती है इस समय। उस समय द्वार बंद कर ले, किसी कोने में बैठ जाए और आँख बंद करके आब्जर्व करें, निरीक्षण करें। क्या है यह क्रोध, कहाँ से यह उठता है, क्यों यह उठता है, कैसे यह चित्त को पकड़ लेता, बांध लेता, पागल कर देता है इस पूरी प्रक्रिया को, इस पूरी प्रोसेस को--क्रोध के जन्म से लेकर क्रोध के युवा होने तक देखें, सिर्फ देखें।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book