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धर्म एवं दर्शन >> असंभव क्रांति

असंभव क्रांति

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :405
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9551
आईएसबीएन :9781613014509

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माथेराम में दिये गये प्रवचन

ध्यान इस रोशनी को भीतर ले चलने का ही प्रयोग है। आँख बंद करके हम भीतर जागने की कोशिश करते हैं।

एक वैज्ञानिक क्या करता है वैज्ञानिक बाहर के फेनामिना को, बाहर की घटना को आब्जर्व करता है, निरीक्षण करता है। अपनी प्रयोगशाला में बैठकर, आंखें गड़ाकर, सब तरह से जागकर निरीक्षण करता है, क्या हो रहा है? पानी को उबाल रहा हूँ, गरम कर रहा है तो देख रहा है, कितनी डिग्री पर जाकर पानी गरम होकर भाप बनता है। उसका निरीक्षण कर रहा है, आब्जर्वेशन कर रहा है।

ठीक इसी भांति मन की प्रयोगशाला में द्वार बंद करके, भीतर बैठकर निरीक्षण करना है कि वहाँ क्या हो रहा है क्रोध कितनी डिग्री पर जाकर भाप बन जाता है क्रोध कितनी डिग्री पर जाकर विस्फोट कर लेता है क्रोध क्या है- क्रोध की गति क्या है? विचार क्या है?

विचार कैसे चलता है? कैसे उठता है, कैसे गिरता है? स्मृति क्या है, मेमोरी क्या है? कैसे स्मृति बनती है? प्रेम क्या है, कैसे जन्मता है? घृणा क्या है, कैसे भीतर उठती है, फैलती है? उसका विष कैसे पूरे प्राणों को भर लेता है? ये बहुत सी घटनाएं भीतर घट रही हैं।

इनके प्रति आब्जर्वेशन, भीतर बैठकर--एक वैज्ञानिक जैसे प्रयोगशाला में जांच करता है, खोजता है, वैसे ही इनको भी देखना, जानना और खोजना है।

धर्म आत्मा का विज्ञान है।

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