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धर्म एवं दर्शन >> असंभव क्रांति

असंभव क्रांति

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :405
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9551
आईएसबीएन :9781613014509

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माथेराम में दिये गये प्रवचन

जो आदमी ब्रह्मचर्य चिपका लेता है ऊपर, इसके भीतर गहरी सेक्सुअलिटि होती है। नहीं तो इसे ब्रह्मचर्य चिपकाने की कोई जरूरत न थी। जो आदमी अपरिग्रह, नान-अटेचमेंट चिपका लेता है अपने ऊपर, इसके भीतर बहुत गहरा परिग्रह, बहुत गहरा अटेचमेंट है। ऐसे हमारे भीतर जो नहीं है, उसको ही हम ऊपर चिपका लेते हैं। और इस ऊपर चिपकाए हुए झूठे कागजी फूलों से हमारा व्यक्तित्व बनता है। इस व्यक्तित्व को टूटने का डर है। जैसे ही आप भीतर प्रवेश करेंगे, यह इमेज, यह प्रतिमा तोड़नी पड़ेगी। खुद की प्रतिमा तोड़ने के लिए जो तैयार है, वही साधक है और कोई साधक नहीं है।

वही यात्रा कर सकता है सत्य की, जो इस बात को हिम्मत से जानने को तैयार है कि कुछ भी हो, जो सच्चाई है उसे मैं जानना चाहता हूँ। चाहे मेरे सारे फूल गिर जाएं, मेरी सारी सजावट गिर जाए, मेरा सारा सौंदर्य उखड़ जाए, लेकिन जो मन है, चाहे वह कितना ही अग्ली हो, मैं उसको देखने के लिए तैयार हूँ।

एक बार एक बहुत अदभुत घटना घटी थी। इंद्र ने तीन ऋषियों को स्वर्ग में आमंत्रित किया था। उन तीन ऋषियों की तपश्चर्या की खबर सारी पृथ्वी पर फैल गई थी। इंद्र ने स्वर्ग की सबसे सुंदरी अप्सरा उर्वशी को कहा, इन तीन ऋषियों के मन को किसी भी भांति विचलित करना है। उर्वशी ने कहा, कठिन नहीं है यह काम। ऋषि-मुनि बहुत जल्दी विचलित हो जाते हैं। यह हो सकेगा। क्योंकि जो लोग स्त्रियों से दूर-दूर भागते हैं, उनके मन में स्त्रियों का गहरा आकर्षण है। जल्दी हो सकेगी यह बात। अगर वेश्यालय में पड़े किसी आदमी को विचलित करना होता तो बहुत कठिन था। क्योंकि वह स्त्रियों से इतना परिचित है कि उसे विचलित करना थोड़ा मुश्किल है। लेकिन ऋषि-मुनि हैं, ये तो बेचारे जल्दी ही मुश्किल में पड़ सकते हैं।

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