लोगों की राय

धर्म एवं दर्शन >> असंभव क्रांति

असंभव क्रांति

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :405
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9551
आईएसबीएन :9781613014509

Like this Hindi book 5 पाठकों को प्रिय

434 पाठक हैं

माथेराम में दिये गये प्रवचन

एक ऋषि घबड़ाया और जोर से चिल्लाया रुको, ठहरो। उर्वशी यह मर्यादा का उल्लंघन है। वस्त्र नहीं निकाल सकती हो। लेकिन दूसरे दो ऋषियों ने कहा, मित्र, अगर आप घबड़ा गए हो तो आंखें बंद कर लें, नृत्य बंद नहीं होगा। नृत्य को आप कैसे रोक सकते हैं और किसी को वस्त्र निकालना हो तो भी आप कैसे रोक सकते हैं? आपका हक और अधिकार क्या है? एक हक आपका जरूर है कि आप आँख बंद कर लें। नृत्य चलेगा। और उन्होंने कहा, उर्वशी नृत्य चलने दो।

नृत्य चला। पहले ऋषि ने आंखें बंद कर लीं। लेकिन उस बेचारे को पता नहीं था कि खुली आँख--फिर भी गनीमत थी, बंद आँख--और भी मुश्किल में डाल दी। आँख बंद करने से कही उर्वशियां दिखना बंद होती हैं? आँख बंद करने से कुछ भी चीज दिखनी बंद होती है क्या?

आँख बंद होने से उर्वशी और सुंदर दिखाई पड़ने लगी। सपने सुंदर होते हैं जागरण से ज्यादा। और सुंदर होकर मन को दिखाई पड़ने लगी। और मन भीतर से धक्के देने लगा ऋषि को कि आँख खोलो। आँख खुली थी तो कम से कम यह उपद्रव नहीं था। मन कहने लगा, आँख खोलो। वह पीछे के अनकांशस हिस्से कहने लगे, आँख खोलो। पता नहीं उर्वशी ने और भी वस्त्र फेंक दिए हों, आँख खोलो। और यह चेतन मन कहने लगा, आँख कैसे खोली जा सकती है हाथ-पैर कंपने लगे। आँख को और जोर से बंद करना जरूरी हो गया। बड़ी ताकत, बड़ी मेहनत उस ऋषि पर पड़ने लगी। वह बड़ी बेचैनी में पड़ गया। बड़ी मुश्किल में पड़ गया।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book