धर्म एवं दर्शन >> असंभव क्रांति असंभव क्रांतिओशो
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माथेराम में दिये गये प्रवचन
एक बहन ने पूछा है, नारियाँ आध्यात्मिक जीवन में उत्सुक होती है, तो पुरुष बाधा बनते हैं। नारियाँ क्या करें?
पहली तो बात यह आध्यात्मिक जीवन ऐसा जीवन है जिसमें कोई भी बाधा नहीं बन सकता है। कोई बाधा नहीं बन सकता है। सांसारिक जीवन में कोई बाधा बन सकता है। मुझे एक रास्ते से जाना है और आप रास्ते पर दीवाल खड़ी कर दें, वंदूक लिए खड़े हो जाएं, उधर से मैं नहीं जा सकूंगा। मुझे एक काम करना है, आप मेरे हाथ-पैर बांध दें और जंजीरें कस दें तो मैं नहीं कर सकूंगा। सांसारिक जीवन में दूसरे लोग बाधा बन सकते हैं। क्यों? क्योंकि सांसारिक जीवन में दूसरे लोग सहयोगी भी बन सकते हैं। जहाँ सहयोग मिल सकता है, वहाँ बाधा भी मिल सकती है।
आध्यात्मिक जीवन में सहयोग भी कोई नहीं दे सकता, बाधा भी कोई नहीं दे सकता। सहयोग ही नहीं दे सकता तो बाधा कैसे देगा? जहाँ किसी के कोआपरेशन का ही कोई मूल्य नहीं है, सहयोग का ही कोई मूल्य और अर्थ नहीं है, वहाँ उसके नान-कोआपरेशन का क्या मतलब है। उसके असहयोग का क्या मतलब है।
नहीं, लेकिन अब तक जिसको हम आध्यात्मिक जीवन समझते रहे हैं उसमें पति बाधा बन सकते हैं, पत्नियां बाधा बन सकती हैं। कोई भी बाधा बन सकता है।
अब आपको मंदिर जाना है, हो सकता है पति कहे मंदिर जाना मुझे पसंद नहीं है। असल में मंदिर जाना आध्यात्मिक जीवन ही नहीं है, संसार की ही एक घटना है। इसमें पति बाधा बन सकता है। अब आपको पूजा करनी है, घर में भजन-कीर्तन करने हैं, पति कह सकता है कि मुझे यह पसंद नहीं है, मेरा दिमाग खराब होता है।
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