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धर्म एवं दर्शन >> असंभव क्रांति

असंभव क्रांति

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :405
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9551
आईएसबीएन :9781613014509

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माथेराम में दिये गये प्रवचन

अभी एक मामला मेरे पास आया है। एक महिला ने मुझसे आकर कहा, कुछ दिन हुए कि आप कृपा करके मेरे पति को समझाएं उनके धर्म से हम परेशान हो गए हैं, घर पागल हुआ जा रहा है। क्या हुआ? दो बजे रात से उठ आते हैं और इतने जोर से जपुजी का पाठ करते हैं, इतने जोर से कि बच्चे सो नहीं पाते, हम नहीं सो पाते, मोहल्ले के लोग शिकायत करने लगे हैं कि यह क्या हो रहा है। मैंने उनके पति को बुलाया। वे आए। वे बड़ी खुशी से आए। क्योंकि वे सोचते होंगे कि मैं तो उनके आध्यात्मिक जीवन में साथ दूंगा, सहयोग दूंगा। पत्नी को यह कहूँगा कि तू गलत है, किसी के धार्मिक जीवन में बाधा बननी चाहिए?

वे बोले कि मैं सुबह उठता हूँ तो यह उठने नहीं देती है। मैंने कहा, सुबह यानी कितने बजे। उन्होंने कहा, दो बजे। मैंने कहा, दो बजे सुबह होता है लेकिन वे बोले कि यह तो ऋषि-मुनियों ने बहुत तारीफ की है कि जितने जल्दी उठो उतना अच्छा। और मैं कोई बुरा काम तो करता नहीं, जपुजी का पाठ करता हूँ। जिसके भी कान में पड़ जाए उसका भी हित है।

मैंने कहा, ऐसा धार्मिक जीवन अगर आपका है तो इसमें आपकी पत्नी और बच्चों को बाधा बनना पड़ेगा। यह तो धार्मिक जीवन न हुआ। यह तो एक पागल का जीवन हुआ, इसका धर्म से क्या वास्ता।

अगर ऐसा कोई जीवन जीना चाहे तो बेचारे पति चिंतित भी हो सकते हैं, पत्नी भी चिंतित हो सकती है कि यह क्या हो रहा है और पति-पत्नी हजारों साल से चिंतित हैं धार्मिक आदमी से, बहुत घबड़ाए हुए रहते हैं। हालांकि जाते हैं, कोई धार्मिक आदमी आता है उसके पैर भी छूते हैं, नमस्कार भी करते हैं लेकिन डरता है। पति डरता है कहीं पत्नी धार्मिक न हो जाए, पत्नी डरती है कहीं पति धार्मिक न हो जाए।

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