धर्म एवं दर्शन >> असंभव क्रांति असंभव क्रांतिओशो
|
5 पाठकों को प्रिय 434 पाठक हैं |
माथेराम में दिये गये प्रवचन
मेरे पास न मालूम कितने पत्र आते हैं। पत्नियां लिखती हैं कि हमारे पति जरा बहुत ही धर्म में उत्सुक हो गए हैं, इससे घबड़ाहट हो गई है, कोई रास्ता बताइए। क्योंकि धर्म के नाम पर जीवन का जो विरोध चलता रहा है और धर्म के नाम पर जो-जो एब्सर्डिटीस, बेवकूफियां चलती रही हैं, कोई भी समझदार आदमी चिंतातुर हो जाता है कि यह क्या हो रहा है, कुछ भी गड़बड़ हो सकती है। और सब तरह की गड़बड़ को मौका मिल गया है, सब तरह की गड़बड़ की जा सकती है।
एक आदमी सड़क पर नंगा खड़ा हो सकता है कि मैं धार्मिक हो गया। इसकी इस स्टुपिडिटी के लिए, इसकी इस मूढ़ता के लिए घर के मां-बाप, बच्चे, पत्नी चिंतित हो जाएं तो कोई हैरानी की बात तो नहीं। यही आदमी अगर हमें धर्म का खयाल न होता तो हम इसकी चिकित्सा की व्यवस्था करते। फौरन इसको ले जाते अस्पताल, मानसिक चिकित्सक के पास कि इसको कुछ गड़बड़ हो गई है, यह आदमी नंगा खड़ा हो गया है। लेकिन यह हम कह ही नहीं पाते। क्योंकि हम जानते हैं कि इसको यह तो परम संन्यासी हो गया है, साधु हो गया है।
चिंताएं हैं। लेकिन ये चिंताएं आध्यात्मिक जीवन के कारण नहीं है। जिसको हम आध्यात्मिक जीवन समझे हैं, वह आध्यात्मिक जीवन ही नहीं है। उसमें बाधा दी जा सकती है। लेकिन मैं जिसे आध्यात्मिक जीवन कहता हूँ उसमें कोई कैसे बाधा दे सकता है कैसे कोई बाधा दे सकता है आप अपने चित्त को शांत करें। कोई पति, कोई पत्नी कैसे बाधा दे सकता है? बल्कि प्रसन्न होगा कोई भी, क्योंकि शांत आदमी के साथ जीना एक आनंद है।
|