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धर्म एवं दर्शन >> असंभव क्रांति

असंभव क्रांति

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :405
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9551
आईएसबीएन :9781613014509

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माथेराम में दिये गये प्रवचन

एक आदमी ने एक महल बनवाया था। उसमें एक ही दरवाजा रखा था कि कोई शत्रु घर के भीतर न घुस सके। दरवाजे पर सख्त पहरा रखा था। फिर पड़ोस का राजा उसके महल को देखने आया। उसने कहा, और सब ठीक है, एकदम अच्छा है, मैं भी ऐसा ही महल बनाना चाहूँगा। लेकिन एक गलती है तुम्हारे महल में। इसमें एक दरवाजा है, यह खतरा है। दरवाजे से मौत भीतर आ सकती है। तुम कृपा करो, यह दरवाजा और बंद कर लो। फिर तुम पूर्ण सुरक्षित हो जाओगे। फिर न कोई भीतर आ सकता है, न कोई बाहर जा सकता है।

उस राजा ने कहा, खयाल तो मुझे भी यह आया था, लेकिन अगर दरवाजा भी मैं बंद कर लूंगा तो फिर सुरक्षा की जरूरत भी किसे रह जाएगी। मैं तो मर ही जाऊंगा। जी रहा हूँ, क्योंकि दरवाजा खुला है। तो उस दूसरे राजा ने कहा, इसका मतलब यह हुआ कि दरवाजा अगर बिलकुल बंद हो जाए तो तुम मर जाओगे। एक दरवाजा खुला है तो तुम थोड़े जी रहे हो। दो दरवाजे खुलेंगे, तुम थोड़ा और ज्यादा जीओगे। अगर सब दरवाजे खुले रहेंगे तो तुम पूरी तरह से जीओगे।

लेकिन सब दरवाजे खोलने में हम डरते हैं, और इसलिए जी नहीं पाते। सब दरवाजे बंद कर लेते हैं जिदगी के, फिर भीतर सिक्योरिटी में, सुरक्षा में निश्चिंत होकर सो जाते हैं। उसी सोने को हम जिंदगी समझ लेते हैं।

इन तीन दिनों में इस तरह जिएं, जैसे कि जीवन में कोई सुरक्षा नहीं है। हो सकता है आप आए हैं माथेरान, वापस न लौट सकें। कोई जरूरी नहीं है आपका वापस लौट जाना। कौन सा जरूरी है इस बात को मान लेने का क्या कारण है कि आप चार सौ आए हैं, चार सौ ही वापस लौट जाएंगे। हो सकता है कोई वापस न लौट पाए। एक दिन तो ऐसा होगा ही कि आप कहीं जाएंगे और वहाँ से वापस न लौट सकेंगे। प्रति घड़ी कोई एक लाख आदमी अपना जीवन खो देते हैं, कहीं न कहीं पृथ्वी पर। आप भी किसी क्षण खो देंगे। वह क्षण यही क्षण हो सकता है, आने वाला क्षण हो सकता है।

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