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धर्म एवं दर्शन >> असंभव क्रांति

असंभव क्रांति

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :405
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9551
आईएसबीएन :9781613014509

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माथेराम में दिये गये प्रवचन

तो जिसको मैं आध्यात्मिक जीवन कह रहा हूँ, अगर वह जगत में आता है तो हर घर एक सुखी घर होगा। अभी जिसको हम आध्यात्मिक जीवन कहते हैं तो उसने हजारों घर बरबाद किए हैं, लाखों घर बरबाद किए हैं। करोड़ों लोगों को इतने कष्ट में डाला है जिसका कोई हिसाब नहीं है। लेकिन हम न मालूम कैसे लोग हैं चुपचाप देख रहे हैं।

दुनिया में क्रिमिनल्स ने, अपराधियों ने इतना नुकसान नहीं किया जितना तथाकथित धार्मिक लोगों ने किया है। कितने घर बरबाद किए हैं, कितने परिवार, कितनी पत्नियों को रोते छोड़ दिया, कितने बच्चों को- कितने मां को, कितने बाप को, अगर उसकी सारी, किसी भी दिन किसी आदमी ने सारे आंकडे इकट्ठे किए तो हम घबड़ा जाएंगे। अपराधियों ने ऐसा कुछ भी नहीं किया है। अपराधी बहुत कम हैं इस मात्रा में।

लेकिन चूंकि हम इस सबको कहते हैं--यह त्याग है, वैराग्य है, अनासक्ति है। हमने अच्छे-अच्छे शब्द इस अपराध को दे दिए हैं। इस क्रिमिनल एक्ट को हमने बहुत अच्छे-अच्छे, ऊंचे-ऊंचे शब्द दे दिए हैं। उन शब्दों के पीछे सब छिप जाता है। रोती हुई पत्नियां छिप जाती हैं, रोते हुए बच्चे छिप जाते हैं, बरबाद घर छिप जाते हैं, सब छिप जाता है। बूढ़े मां-बाप छिप जाते हैं, उनका रोना सब छिप जाता है। क्योंकि हम इस आदमी को सिर पर उठा लेते हैं, जुलूस निकालते हैं, जोर से बाजा बजाते हैं कि संन्यास हो गया, दीक्षा हो गयी।

गांवभर में शोरगुल मचा देते हैं। उस शोरगुल में वह घर जो रोता हुआ पीछे छूट गया है, वह अंधेरे कोने में खड़ा रह जाता है। उसको रोने की भी हिम्मत नहीं होती कि रोए तो कैसे रोए, इतना गांव तो खुशी मना रहा है। वह भी उस खुशी में उदास मन, आंसू लिए सम्मिलित हो जाता है।

हजारों घर बरबाद हुए हैं धर्म के नाम पर। और ऐसे धर्म के लिए अगर पति चिंतित हो जाए तो बिलकुल ठीक है। पत्नी चिंतित हो जाए, बिलकुल ठीक है। लेकिन उस धर्म की मैं बात नहीं कर रहा हूँ। वह धर्म ही नहीं है।

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