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धर्म एवं दर्शन >> असंभव क्रांति

असंभव क्रांति

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :405
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9551
आईएसबीएन :9781613014509

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माथेराम में दिये गये प्रवचन

जिन ऋषि-मुनियों की आप रोज पूजा करते हैं--आरती, वे अगर सड़क पर मिल जाएं, तो दो पैसा भी शायद ही आप उनको दें। बल्कि हो सकता है, पुलिस में रिपोर्ट करवा दें कि यह आदमी धोखा दे रहा है। जिसकी हम पूजा करते हैं, वह आदमी कहीं सड़क पर भीख मांग सकता है। यह धोखेबाज है कोई। एक प्रपोगेंडा होता है, एक हवा होती है।

चर्चिल ने लिखा है कि मैं एक दफा रेडियो से बोलने को था। एक स्टेशन पर उतरा। एक टैक्सी-ड्राइवर को कहा कि जल्दी मुझे रेडियो स्टेशन पहुचा दो। उसने कहा, माफ करिए, मेरा प्यारा नेता चर्चिल आज रेडियो से बोलने को है। मैं अपने घर जा रहा हूँ, रेडियो पर उसका भाषण सुनूंगा, आप कहीं और कोई टैक्सी कर ले।

चर्चिल बहुत खुश हुआ। इतना आदर एक टैक्सी-ड्राइवर भी उसका करता है। उसने खीसे में हाथ डाला, पांच पौंड के नोट निकालकर टैक्सी-ड्राइवर के हाथ में दिए--इनाम के तौर कि यह मेरा इतना आदर करता है। टैक्सी-ड्राइवर ने कहा, भाड़ में जाए चर्चिल। मालिक तुम पीछे बैठो, और जहाँ चलना हो चलो।

चर्चिल को खयाल भी नहीं था कि यह पांच पौड देने का यह फल होगा। चर्चिल से क्या लेना-देना है? चर्चिल का एक इमेज बना हुआ है, वह अलग ही है। इस आदमी से क्या मतलब?

प्रचार प्रतिमाएं खड़ी कर देते हैं, और फिर हम उनको हजारों साल तक पूजते रहते हैं। और जितना प्रचार लंबा होता जाता है, उतनी ही वे प्रतिमाएं दुर्गम होती जाती हैं, आकाश उठने लगती हैं। फिर वह आदमी नहीं रह जाते, धीरे-धीरे परमात्मा हो जाते हैं, भगवांन, अवतार हो जाते हैं, और न मालूम क्या। और उनके इतने पागल भक्त पीछे होते हैं कि कोई शक करे तो जिंदगी खतरे में डाले। तो कौन कहे?

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