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धर्म एवं दर्शन >> असंभव क्रांति

असंभव क्रांति

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :405
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9551
आईएसबीएन :9781613014509

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माथेराम में दिये गये प्रवचन

      

हिटलर ने अपनी आत्मकथा में स्पष्ट ही लिखा है कि मैंने बहुत दिनों के अनुभव से यह जाना कि सत्य और असत्य में एक ही फर्क है। जो असत्य बहुत बार जनता के सामने दोहराया जाता है, वह सत्य हो जाता है। बस बार-बार दोहराने का सवाल है। फिक्र न के, दोहराते चले जाओ, दोहराते चले जाओ। धीरे-धीरे वह मन भूल जाएगा कि यह बात सच थी। बार-बार सुनने से, परिचित होने से, खुद ही भूल जाएगा। यहाँ तक होता है कि जो आदमी खुद प्रचार करता है, जब बात बहुत प्रचारित हो जाती है, तो वह खुद शक में आ जाता है कि कहीं यह सच तो नहीं है।

ऐसा मैंने सुना है, एक दफे ऐसी घटना हो गई।

एक आदमी जो कि एक बहुत बड़ा विज्ञापन सलाहकार था, एक्सपर्ट था एडवरटाइजमेंट का, वह मरा। वह स्वर्ग के द्वार पर पहुँचा। ईसाइयों का स्वर्ग रहा होगा। सेंट पीटर वहाँ दरवाजे पर होते हैं। तो सेंट पीटर ने कहा, महाशय तुम हो कौन? उसने कहा, मैं एक विज्ञापन का विशेषज्ञ हूँ। सेंट पीटर ने कहा, विज्ञापन वाले लोगों का कोटा स्वर्ग का पूरा हो गया, पच्चीस आदमियों से ज्यादा हम नहीं लेते। तो आपको दूसरी जगह जाना पड़ेगा। और दूसरी जगह यानी नरक। पच्चीस हो गए।

उस विज्ञापनदाता ने कहा कि सेंट पीटर, तुम्हारे हम अखबारों में फोटो छपवा देंगे, कोई रास्ता नहीं हो सकता, कोई उपाय नहीं हो सकता कि मैं इसी जगह आ जाऊं? सेंट पीटर ने कहा, फोटो बड़े छपवाने पडेंगे, ठीक से। रास्ता बन सकता है। चौबीस घंटे का मैं तुम्हें मौका देता हूँ। तुम पच्चीस विज्ञापनदाताओं में से किसी एक को राजी कर लो कि तुम्हारी जगह वहाँ चला जाए, तुम यहाँ आ जाओ।

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