धर्म एवं दर्शन >> असंभव क्रांति असंभव क्रांतिओशो
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माथेराम में दिये गये प्रवचन
जिस खलीफा ने वहाँ आग लगाई थी, वह अपने हाथ में एक शास्त्र लेकर पहुँचा था, वह कुरान लेकर पहुँचा था। अगर कुरान भी एक किताब होती तो उस लाइब्रेरी में आग लगाने की कोई जरूरत न थी। वहाँ और किताबें थी, कुरान भी एक किताब थी। यह भी उन किताबों में सम्मिलित हो सकती थी।
लेकिन कुरान था एक शास्त्र। लाइब्रेरी में कोई शास्त्र नहीं था। क्योंकि एक शास्त्र, दूसरे शास्त्र को नहीं मानता, दूसरे शास्त्र के प्रति बड़ा ईष्यालु होता है, क्योंकि शास्त्र हो सकता है एक, पच्चीस दावे सही नहीं हो सकते। एक ही दावा सही हो सकता है।
उस खलीफा ने जाकर उस पुस्तकालय के अध्यक्ष को कहा था--एक हाथ में कुरान लेकर और एक हाथ में मशाल--उससे कहा था कि मैं यह पूछने आया हूँ कि कुरान में जो कुछ लिखा है, तुम्हारे इस पुस्तकालय में जो किताबें हैं, क्या उनमें भी वही लिखा है जो कुरान में लिखा है, अगर वही लिखा है तो इतनी किताबों की कोई जरूरत नहीं, कुरान काफी है, कुरान पर्याप्त है। अगर वही बातें लिखी है तो इतना यहाँ इतना उपद्रव मचाने की क्या जरूरत है और अगर तुम्हारी इन किताबों में ऐसी बातें भी लिखी हैं जो कुरान में नहीं हैं, तब तो इस पुस्तकालय को एक क्षण बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। क्योंकि कुरान के अतिरिक्त जो कुछ भी है, सब गलत है। सत्य तो कुरान है।
तो उस खलीफा ने कहा, दोनों हालत में--तुम्हारा उत्तर चाहे कुछ भी हो, मैं आग लगाने आया हूँ। चाहे तुम कहो कि इनमें भी वही बातें लिखी हैं जो कुरान में है, तब मैं कहूँगा कि फिजूल हैं ये किताबें। और अगर तुम कहो कि इनमें ऐसी बातें भी हैं जो कुरान में नहीं, तो मैं कहूँगा खतरनाक हैं ये किताबें। इनको इसी वक्त जला देना जरूरी है। उसने एक हाथ में कुरान को नमस्कार करके और उस पुस्तकालय में आग लगा दी।
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