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धर्म एवं दर्शन >> असंभव क्रांति

असंभव क्रांति

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :405
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9551
आईएसबीएन :9781613014509

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माथेराम में दिये गये प्रवचन

यह कुरान शास्त्र था, अगर किताब होती तो इस पुस्तकालय में आग नहीं लग सकती थी। मैंने किताबों के विरोध में कुछ भी नहीं कहा है। जो कहा है शास्त्र के विरोध में कहा है। शास्त्र किताब नहीं है--पागल हो गई किताब है। एक साधारण आदमी, एक आदमी है। और फिर एक आदमी पागल हो जाए और कहने लगे मैं ईश्वर हूँ, परमेश्वर हूँ, सर्वज्ञ हूँ, केवली हूँ, तीर्थंकर हूँ, अवतार हूँ, ईश्वर का पुत्र हूँ, यह आदमी पागल हो गया है। यह आदमी जितना ज्ञान से भरता है, उतना भूल जाता है कि मैं हूँ। इसके तो दावे और बड़े हो गए हैं कि मैं मनुष्य ही नहीं, मैं ईश्वर हूँ। यह ईश्वर के जितने निकट पहुंचता, उतना विलीन हो जाता। इससे कोई पूछता कि तुम हो तो शायद यह कहता कि मैं तो बहुत खोजता हूँ, लेकिन पाता नहीं कि कहाँ हूँ। लेकिन यह तो कहने लगा मैं ईश्वर हूँ। और इतना ही कहे तो ठीक। यह, यह भी कहता है कि और अगर कोई कहता हो कि मैं ईश्वर हूँ, तो वह झूठ कहता है।

एक मुसलमान राजधानी में, एक आदमी ने आकर घोषणा कर दी कि मैं पैगंबर हूँ। उसे पकड़ लिया गया। उस बादशाह ने उसे कैद में बंद करवा दिया और चौबीस घंटे बाद उसके पास गया। और उससे कहा स्मरण रखो, मोहम्मद के बाद अब कोई पैगंबर नहीं। इस तरह की बातें कहोगे, तो मौत के सिवाय और कोई सजा नहीं होगी। चौबीस घंटे में कुछ अकल आई उसे बहुत कोड़े मारे गए थे, पीटा गया था, भूखा रखा गया था, लहूलुहान कर दिया था, चमडी कट गई थी, वह बंधा था एक खंभे से। होश आया हो, माफी मांग लो, तो छूट सकते हो।

वह पैगंबर हँसा। और उसने कहा कि तुम्हें पता नहीं, जब परमात्मा ने मुझसे कहा था मैं तुम्हें पैगंबर बनाकर भेज रहा हूँ, तो उसने मुझे यह भी कहा था कि पैगंबरों पर मुसीबतें आती है। सो मुसीबतें आनी शुरू हो गईं। इससे यह सिद्ध नहीं होता कि मैं पैगंबर नहीं हूँ।

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