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धर्म एवं दर्शन >> असंभव क्रांति

असंभव क्रांति

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :405
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9551
आईएसबीएन :9781613014509

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माथेराम में दिये गये प्रवचन

लेकिन इस शास्त्र को पढ़ने के रास्ते बड़े अलग हैं, उन रास्तों से जो स्कूल में पढ़ने के सिखाए जाते हैं। स्कूल में तो किताब ही पढ़ने का रास्ता सिखाया जा सकता है, शास्त्र पढ़ने का नहीं। शास्त्र पढ़ने का, इस शास्त्र को जो परमात्मा का है, चारो तरफ मौजूद, इसको पढ़ने का कोई और ही रास्ता है। उसी रास्ते के संबंध में कोई--कोई झलक हमें खयाल में आ जाए, उसी तरफ कोई इशारा हमें दिखाई पड़ जाए, उसी तरफ कोई ध्वनि हमें सुनाई पड़ जाए। इसलिए हम यहाँ इकट्ठे भी हुए हैं।

ऐसे मैं शास्त्रों के विरोध में बोलता हूँ, बोल रहा हूँ। लेकिन अगर आप मुझे समझेंगे, तो मैं परमात्मा के शास्त्र के बहुत पक्ष में हूँ और उसके पक्ष में हूँ इसीलिए आदमियों की किसी भी किताब को शास्त्र का ओहदा नहीं देना चाहता हूँ। आदमी की कोई भी किताब जब शास्त्र बनती है, तो परमात्मा के शास्त्र की खोज बंद हो जाती है। फिर उस तरफ हमारी आंखें नहीं उठती हैं। फिर यही किताब दीवाल बन जाती है। हम इसको ही शास्त्र समझ लेते हैं और रुक जाते हैं।

तो, अगर शास्त्र ही पढ़ना हो प्रभु का तो आदमी के सब शास्त्र बीच में बाधा है, यह जान लेना जरूरी है। और आंखें उनसे मुक्त हो जानी चाहिए, तो ही आंखें उस विराट शास्त्र की तरफ, उस सत्य की तरफ उठ सकती है। और वह शास्त्र बड़ा अजीब है। वह पत्ते पर भी लिखा है, हवाओं में भी, बादलों में भी, चांद-तारों में भी, आदमी की आंखों में भी। लेकिन आदमी की आंखें बहुत झूठी हो गई हैं, शायद वहाँ पढ़ा न जा सके। मैंने सुना है, एक बहुत बड़ा राजनीतिज्ञ अपने सेक्रेटरी के लिए चुनाव कर रहा था। उसने अनेक लोगों को बुलाया हुआ था, उनका इंटरव्यू ले रहा था। एक बहुत योग्य युवक उसे दिखाई पड़ा। पच्चीसों युवक आए थे, एक युवक बहुत योग्य मालूम पड़ता था। सोचा उसने इसको चुन लें। लेकिन चुनने के पहले उसने एक परीक्षा लेनी चाही।

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