लोगों की राय

धर्म एवं दर्शन >> असंभव क्रांति

असंभव क्रांति

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :405
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9551
आईएसबीएन :9781613014509

Like this Hindi book 5 पाठकों को प्रिय

434 पाठक हैं

माथेराम में दिये गये प्रवचन

उसने उस युवक से कहा कि मैं तुम्हे नौकरी पर रख लूंगा। इन पच्चीस युवकों में तुम्हीं मुझे सबसे ज्यादा योग्य मालूम पड़े हो। लेकिन एक शर्त, एक परीक्षा पहले। और वह परीक्षा यह, मेरी दो आंखों में एक आँख नकली है और एक असली। क्या तुम पहचानकर बता सकते हो, कौन सी नकली है और कौन सी असली है?

उस युवक ने आंखों को थोड़ी देर गौर से देखा और फिर कहा, आपकी बांईं आँख असली है। वह राजनीतिज्ञ हैरान हुआ। उसने कहा, तुमने पहचाना कैसे। उसने कहा, आपकी बांईं आँख असली है। राजनीतिज्ञ ने पूछा, तुमने पहचाना कैसे?

उसने कहा, आपकी दांईं आँख जो कि नकली है, उसमें थोड़ी सहानुभूति दिखाई पड़ती है। असली आँख में तो आपके सहानुभूति हो ही नहीं सकती, इतना मैं भी समझता हूँ। तो जिस आँख में सहानुभूति दिखाई पड़ती है, उसको मैंने नकली समझ लिया। और जिसमें कोई सहानुभूति नहीं दिखाई पड़ती, उसको मैंने असली समझ लिया। ऐसे ही नाप-जोख करके मैंने बताया कि आपकी बांईं आँख असली है। बांईं आँख असली थी।

आदमी तो, हो सकता है कि उसकी आँख में न भी दिखाई पड़े। फिर जितना पंडित हो, जितने बडे पद पर हो, जितना बड़ा ज्ञानी हो, जितना बड़ा संन्यासी हो, उतना ही उसकी आँख में दिखाई पड़ना मुश्किल हो जाएगा। लेकिन हो सकता है सीधे-साधे सरल लोग, विनम्र लोग, जो कुछ भी नहीं है, जो नो-बडी है, उनकी आंखों में शायद परमात्मा की किताब का अभी भी कोई अंश आपको दिखाई पड़ जाए। लेकिन उतना सवाल किसी की आँख में दिखाई पड़ने का नहीं, पहले तो आपकी आँख देखने वाली होनी चाहिए। नहीं तो आपको कहीं भी दिखाई नहीं पड़ेगा।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book