धर्म एवं दर्शन >> असंभव क्रांति असंभव क्रांतिओशो
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माथेराम में दिये गये प्रवचन
लेकिन यह काम बड़ा कठिन है। अगर करने का होता तो आप कर देते, चाहे वह कितना ही कठिन होता। लेकिन न करने का काम बड़ा कठिन है। क्योंकि हमारी पकड़ में नहीं आता कि हम क्या करें- और न करने की हमारी कोई आदत नहीं है कि हम खाली बैठ जाएं और कुछ न करें। हम कहेंगे, कुछ तो बताइए--राम-राम जपें, माला दे दीजिए, कुछ बताइए, हम कुछ करें?
मेरे पास रोज लोग आते हैं। वे कहते हैं, सब ठीक है। लेकिन आप कुछ तो बता दीजिए कि हम करें। करने जैसा कुछ बता दीजिए तो फिर सब ठीक हो जाए। अब कठिनाई यह है कि जैसे ही आपने करना शुरू किया, आप ध्यान के बाहर हो गए। करना यानी ध्यान के बाहर हो जाना। न करना, नो एक्शन, यानी ध्यान में हो जाना। न करने की सारी बात है। कुछ भी न करें।
लेकिन आप कुछ न भी करेंगे, तो भी भीतर तो विचार चलेंगे ही। उनकी तो आदत है निरंतर की। वे भीतर गतिमान होते रहेंगे, उनका चक्कर भीतर चलता रहेगा। उनके साथ क्या करें? उनके साथ भी कुछ न करें। चुपचाप उन्हें देखते रहे। वे आपका बिगाड़ भी क्या रहे हैं- वे आपका क्या हर्ज कर रहे हैं, आपका कौन सा नुकसान हुआ जा रहा है झींगुर बोल रहे हैं दरख्तों पर, आकाश में बादल चल रहे हैं, हवाएं बह रही हैं, ऐसे ही विचार चल रहे हैं--आप परेशान क्यों हैं उनसे?
लेकिन हमें सिखाया गया है, विचारों को रोको। विचारों को रोक लिया तो ध्यान हो जाएगा। हो गई मुसीबत। विचार रोक नहीं सकेंगे आप और ध्यान कभी होगा नहीं। विचार को रोकने की कोशिश ही विचार को निमंत्रण है।
विचार का सीधा सा सूत्र है। जिस चीज को हम रोकना चाहेंगे विचार के तल पर, वह चीज दुगने बल से आनी शुरू हो जाएगी। रोककर देख लें कोई एकाध विचार। कोशिश कर लें कि इसको हम न आने देंगे।
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