धर्म एवं दर्शन >> असंभव क्रांति असंभव क्रांतिओशो
|
5 पाठकों को प्रिय 434 पाठक हैं |
माथेराम में दिये गये प्रवचन
नींद न आने की बीमारी किसी को भी नहीं है। नींद लाने की बीमारी जरूर कुछ लोगों को पैदा हो जाती है। और फिर, फिर नींद आनी बंद हो जाती है। नींद लाने की कोशिश से नींद नहीं आ सकती, क्योंकि कोशिश नींद विरोधी है।
अमरीका में कोई तीस प्रतिशत लोग बिना नींद की दवाओं के नहीं सो रहे हैं। और वहाँ के मनोचिकित्सकों का खयाल है कि सौ वर्ष बाद अमरीका में एक भी आदमी स्वाभाविक रूप से सोने में समर्थ नहीं रह जाएगा। एक ही शर्त खयाल में रखकर--अगर अमरीका या आदमी बचा सौ साल बाद। तो ऐसा नहीं हो सकता कि कोई आदमी बिना ही दवा के सो जाए।
अगर सौ साल बाद अमरीका के उन लोगों को कहा जाएगा कि एक जमाना ऐसा भी था कि लोग बस जाते थे, सिर रखा बिस्तर पर और सो जाते थे। तो क्या वे लोग विश्वास कर सकेंगे- क्या वे मान सकेंगे कि ऐसा भी कभी हो सकता है कि कोई आदमी जाए और बस सो जाए। हद हो गई। यह तो हो ही नहीं सकता।
अभी भी जिसको नींद नहीं आती है, उससे आप कहिए कि हम तो तकिए पर सिर रखते हैं और सो जाते हैं। तो वह कहेगा, आप क्या झूठी बातें कर रहे हैं, कोई तरकीब होगी जरूर आपकी, बताते नहीं हैं। क्योंकि मैं तो तकिए पर बहुत सिर रखता हूँ, लेकिन नहीं सो पाता।
ध्यान भी इतनी ही सरल बात है, इतनी ही सरल। लेकिन प्रयास करिएगा, तो बाधा पड़ जाएगी।
अभी हम जब यहाँ, अभी रात्रि के ध्यान के लिए बैठेंगे, तो एक बात खयाल में रखिए, कोई प्रयास नहीं करना है। ऐसा ढीले-ढाले चुपचाप रह जाना है, कोई चेष्टा नहीं करनी। ध्यान लगाने की, लाने की कोई कोशिश नहीं करनी। फिर आप कहेंगे, हम क्या करेंगे? बस, आप एक ही कृपा करें, कुछ न करें। और ध्यान आना शुरू हो जाएगा।
|