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उपन्यास >> फ्लर्ट

फ्लर्ट

प्रतिमा खनका

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :609
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9562
आईएसबीएन :9781613014950

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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।


3

एक गुनगुनी दोपहर।


गर्म कोट अब बदन में चुभने लगे थे। अपने कोट को एक कन्धे पर लटकाये छुट्टी के बाद मैं, समीर और मनोज के साथ स्कूल के गेट पर कुछ बात कर रहा था कि प्रीती की एक करीबी सहेली ने आकर कहा-

‘प्रीती आपसे कुछ बात करना चाहती है।’

मनोज या समीर को कुछ कहने की जरूरत ही नहीं पड़ी वो दोनों वैसे ही मुझे छोड़कर चलते बने।

मैं अकेले ही फुटपाथ पर टहलते हुए चल रहा था कि एक स्कूटी के टायर मेरे पैरों से कुछ इंच की दूरी पर अचानक रुके।

‘हैलो।’ उसने आने में जरा भी वक्त नहीं लगाया।

‘या हाय।’

मेरे संकुचित से जवाब ने उसकी लम्बी सी मुस्कुराहट को कुछ कम कर दिया। आते जाते बच्चों की भीड़ पर नजरे करते हुए-‘मुझे... मुझे आपसे कुछ बात करनी थी।’

‘जानता हूँ।’

‘अमम्...वो...’ होठों को आपस में भींचे उसने हिम्मत जमा की और- ‘समीर कहाँ है?’

‘घर गया।’

‘ओ के । इसका मतलब आप अकेले घर जा रहे हैं।’ इस बेरस सी बात को बड़े चाव से कहा उसने।

‘हाँ, लग तो रहा है।’

वो तय ही नहीं कर पा रही थी कि मैं किस मूड में खड़ा हूँ। हम दोनों कुछ देर को चुप हो गये।

इस बार उसके लिए भी शुरुआत करना थोड़ा मुश्किल था।

‘आप इतना कम क्यों बोलते हैं?’ एक हल्की सी शिकायत थी।

‘मुझे ज्यादा बोलना नहीं आता।’

इस बार उसे मेरे लहजे में कुछ खटास सी महसूस हुई। वहीं खड़े होकर बात खींचने के बजाय-

‘आप टू व्हीलर चला लेते हैं?’ पूछते हुए वो स्कूटी से उतर गयी।

किसी लड़की की गाड़ी चलाना.... कम से कम उस वक्त तो मेरे लिए बहुत ही बुरा एहसास था। उस उम्र में ऐसा करना किसी भी लड़के को शायद ही पसन्द आता। बहुत ही बुरे मन से मैंने गाड़ी स्टार्ट की।

प्रीती काफी समय से कुछ बात करना चाहती थी। हमने बमुश्किल एक किलोमीटर ही तय किया था कि उसने गाड़ी किनारे लगाने को कहा।

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