उपन्यास >> फ्लर्ट फ्लर्टप्रतिमा खनका
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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।
‘गुड मार्निंग।’
शायद ये पहली बार मैंने उससे बात की थी। उसके लिए काफी अजीब रहा होगा क्योंकि वो मेरी तरफ कम और दीवारों को ज्यादा देख रही थी। उसका ज्यादा वक्त लेना मुझे ठीक नहीं लगा इसलिए सिर्फ खानापूर्ति की बातें करके मैं असल बात पर पहुँच गया।
‘मैं ये नहीं ले सकता।’ मैंने बाक्स उसके हाथ पर रख दिया।
उसके चेहरे की रंगत ही बदल गयी, शायद वो कुछ और सोच रही थी और मैंने कुछ और कह दिया।
‘आपको पसन्द नहीं है?’ बड़ी दबी सी आवाज थी।
‘वो बात नहीं है बस ऐसे ही।’
लगा था कि वो जोर देगी कि मैं उसका तोहफा ना लौटाऊँ। लगा था कि हमारे बीच कोई हल्की फुल्की बहस होगी लेकिन-
‘अगर आप को ये वाकई नहीं लेनी तो आप इसे कहीं फेंक आइये।’ उसने सारी बहस खत्म कर दी।
कुछ ज्यादा ही पैसा है इसके बाप के पास! जितनी देर में मेरे दिमाग ने ये कहा उतनी देर में वो बैग रखकर जा चुकी थी।
मैंने जाकर वो घड़ी उसकी मेज पर रख दी। ना इस खेल को और ना ही उसके पागलपन को बढ़ावा देना चाहता था। मैंने अपनी तरफ से ये खेल खत्म कर दिया था लेकिन फिर भी ये आगे बढ़ा। प्रार्थना के बाद जैसे ही वो क्लास में आयी फिर से उसे मेरे पास रख गयी। एक-दो बार मैंने और कोशिश की, छोटे बच्चों के हाथों भी वापस करवाई लेकिन वो नहीं मानी, आखिरकार मैं वो घड़ी घर ही ले आया लेकिन मैं उसे पहनकर कभी स्कूल नहीं गया। बहुत अजीब लगता था।
कुछ दिन बीते। प्रीती खामोश थी। अब वो मेरी तरफ से कुछ चाहती थी। वो हमेशा ही मेरी खाली आँखों में अपने लिए कुछ तलाशती थी लेकिन वो खाली ही रहीं। करीब एक महीने तक उसने मेरी पहल का इन्तजार किया लेकिन ना मैं कुछ पूछ रहा था ना बता रहा था। ऐसा कुछ भी नहीं कि जो उसे यकीन दिला सके कि मैं उसे उसी तरह लेता हूँ जैसे वो मुझे।
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