उपन्यास >> फ्लर्ट फ्लर्टप्रतिमा खनका
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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।
सर्दियों की सुबह, 7.15
देवदार की लकडी से बना
मेरा कमरा। रजाई, कपड़े, किताबें सब कुछ बिस्तर पर बिखरा पड़ा था। अपने
पुराने ड्रेसिंग के सामने खड़ा मैं अपनी टाई ठीक कर रहा था कि गति ने नीचे
हॉल से आवाज लगायी-
‘अंश तेरा दोस्त आ गया है।’
‘उसे बोल एक मिनट रुकेगा।’ मैंने खिड़की का पर्दा हटाकर बाहर झाँका। समीर की कॉयनैटिक गेट के पास थी लेकिन वो नहीं।
इससे पहले की मैं वापस पलटता-
‘हे!’ उसने मुझे चौंका दिया।
‘गुड मॉर्निंग।’ मैं वापस ड्रेसिंग पर चला गया।
‘यार तू तैयार होने में इतना वक्त क्यों लगाता है? गति बता रही थी कि आधे घन्टे से आईना घेर के खड़ा हुआ है। मतलब दो-चार लड़कियों ने तुझे सो क्यूट क्या कह दिया तू तो उड़ने लगा।’ मेरी चाय का कप उठाकर वो खिड़की पर बैठ गया।
‘मैंने उसमें कुछ घूँट पिये थे।’
‘तो क्या हुआ?’ उसने एक घूँट भरी। ‘वैसे मुझे लगता है कि आज भी हमें देर से जाने पर सजा मिलने वाली है।’
उसकी बक-बक पर ध्यान दिये बिना मैंने अलमारी खोली और अपना कोट निकाला। उसे पहनते हुए एक नजर खुद पर डाली।
‘तू सुन भी रहा है?’ वो चिल्लाया।
‘मेरे कान हैं तेरी तरफ। वैसे मैं तेरी तरह क्रीम पाउडर मलने पर वक्त नहीं खपाता।’
‘वैल थैक्स।’ यूँही पैरों को हवा में लहराते हुए उसने कुछ देर मुझ पर टकटकी लगायी।
‘वैसे कुछ तो है जो इतना अच्छा दिखता है तू, 11वीं में हम पढ़ रहे हैं लेकिन 12वीं क्लास की लड़कियाँ भी तुझे ताकती हैं। क्या हाईट है, क्या फेस है! तुझे घमण्ड है खुद पर, है ना?’
मैंने अपना बैग उठाया- ‘तू चल रहा है?’ और बाहर आ गया। वो मेरे पीछे ही था। सीढ़ियों से नीचे आते हुए-
‘तू मॉडलिंग में क्यों नहीं ट्राय करता? अब तो अन्डर एट्टीन का भी बहुत स्कोप है...’
‘तू हमेशा एक ही बात क्यों करता हूँ मुझसे?’
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