उपन्यास >> फ्लर्ट फ्लर्टप्रतिमा खनका
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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।
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कमरे में पहुँचते ही सबसे
पहले मैंने अपना मोबाइल ऑफ किया और फिर बिस्तर पर गिर पड़ा। कपड़े बदलने
या जूते उतारने तक का सामर्थ्य नहीं है अभी। उस हालत में ही नहीं हूँ।
बेहद थक चुका हूँ.....जिस्मानी तौर पर भी और दिमागी तौर पर भी। मेरी जलती
हुई सी आँखें पलकें बन्द करने पर शान्त होने लगीं लेकिन मन शान्त नहीं हो
पा रहा। ये अब तक भाग ही रहा है उन्हीं अन्धेरे से ख्यालों के बीच। आखिर
मैं क्यों मजबूर हूँ उससे अलग हो जाने को? हमेशा ही उसके साथ क्यों नहीं
रह सकता? क्यों नहीं कह सकता उसे कि हमेशा के लिए बस मेरे ही साथ
रहो...सारी जिन्दगी। क्यों मैं वही फैसला लेने पर मजबूर हूँ जो खुद मुझे
ही चीर रहा है?
मेरी लगातार की जा रही कोशिशें भी मुझे आज वो नहीं दे सकती जो मुझे चाहिये, ये मेरी एक बड़ी हार है और एक वक्त था जब मुझे जीत का पर्याय कहा जाता था।
शायद सोनू आज अपने पिता के साथ हमेशा के लिए चली जायेगी। जल्द ही उसके पिता उसके लिए मुझसे बेहतर पति ढूँढ लेंगे.... हो सकता है कुछ महीनों में वो मुझे भूल जाये....। कैसी होगी मेरी जिन्दगी उसके बिना? मैं वापस चला जाऊँगा अपने परिवार के पास, शिमला?
मेरा बैचेन मन बस सोचता ही जा रहा है और धीरे......धीरे मैं नींद के गहरे अन्धेरे में डूबता जा रहा हूँ। एक के बाद एक मेरी पिछली जिन्दगी की तस्वीरें दिमाग में कौंध रही हैं। वो मॉडल हन्ट। मेरा ऑडिशन। यामिनी से मेरी पहली मुलाकात...वो दिन जब मैंने मुम्बई की जमीं पर पहला कदम रखा... मेरा पहला एड शूट.... वो रात जब सोनू का चेहरा पहली बार मेरे सामने आया.... वो पल जब पहली बार उसका हाथ छुआ। आज भी उन नर्म-गर्म सी उँगलियों की छुअन महसूस कर सकता हूँ अपने हाथों में। ये नरमाहट मुझे खींच कर ले जा रही है किसी ख्वाब की गहरायी में। एक सपना.... लेकिन ये कभी सच था।
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