उपन्यास >> फ्लर्ट फ्लर्टप्रतिमा खनका
|
3 पाठकों को प्रिय 347 पाठक हैं |
जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।
‘ये जिसका नाम पता नहीं उसी को देखकर मुँह कड़वा होता है ना?’
‘लेकिन तुझे कैसे पता?’
‘ऐसे ही अन्दाजा लगा लिया।’
पार्किंग आते ही समीर ने मुझे उतार दिया।
समीर मेरा अच्छा दोस्त था और सिर्फ दोस्त ही नहीं, पड़ोसी भी। बहुत अच्छी दोस्ती होने के बावजूद हम दोनों एक दूसरे से बिल्कुल विपरीत थे। वो एक अच्छे-भले घराने का बेहद बातूनी लड़का था जिसने कभी कोई मुश्किल वक्त देखा ही नहीं था, जो कोई मौका हाथ से निकलने नहीं देता था अपने पैसों और रुतबे के दिखावे का। और मैं, बेहद शान्त, कुछ हद तक शर्मीला और अन्तर्मुखी। समीर लड़कियों के पीछे भागता था और मैं उनसे दूर। मेरे लगभग सारे दोस्तों की गर्लफ्रेंडस थीं लेकिन मेरी नहीं, जबकि सबसे ज्यादा लड़कियाँ मुझे पसन्द करती थीं। ठीक से तो मैं खुद भी नहीं जानता था कि वजह क्या है लेकिन बस एक ही बात समझ आती थी कि मेरे घर के हालात मुझे इस बात की इजाजत नहीं देते।
मैंने कभी कोशिश नहीं की किसी का ध्यान अपनी तरफ खींच लूँ लेकिन फिर भी मैं काफी मशहूर था स्कूल की लड़कियों के बीच।
समीर वापस आया। हम क्लास की तरफ जा रहे थे कि उसने एक लड़की की तरफ उँगली उठायी।
‘अरे देख-देख, ये ही है प्रीती पुण्डीर। बडे़ अमीर बाप की औलाद है।’
‘अच्छा है उसके लिए।’ मैंने एक लापरवाह सी नजर उसपर डाली।
‘तेरे लिए कुछ बुरा होता है?’
समीर ने बातें करते हुए प्रीती की तरफ इशारा किया था, जिसकी वजह से उसने हमें नोटिस किया और फिर हमेशा नोटिस करती रही।
प्रीती वाकई अच्छी लड़की थी, कुछ ही दिनों में ही वो क्लास की सबसे पसन्द की जाने वाली लड़कियों में थी लेकिन मेरे लिए नहीं। मुझे कभी किसी का आकर्षण नहीं हुआ। सारी लड़कियाँ एक जैसी ही दिखती थीं और शायद इसीलिए करीब दो महीनों तक मेरी प्रीती से भी खास बात नहीं हुई। ना तो उसकी नर्म नजरें ना उसकी मन्द मुस्कुराहट मुझे छू सकी।
कुछ ही समय बाद समीर ने मुझे बताया कि वो प्रीती को चाहने लगा है। प्रीती को स्कूल में आये हुए दो महीने हो गये थे लेकिन वो उसे कुछ कह नहीं सका। सारे दोस्त उस दिन का इन्तजार कर रहे थे जब वो अपने मन की बात प्रीती के आगे रखता।
|