उपन्यास >> फ्लर्ट फ्लर्टप्रतिमा खनका
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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।
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आखिरकार एक सुबह –
मैं मनोज और समीर के साथ
गेट के पास रेलिंग से टिक कर खड़ा था कि समीर ने अपने कोट की जेब से लाल
गुलाब निकाला।
‘यार अंश, आज कह दूँ?’ उसने बडे़ उत्साह से पूछा।
‘हम बोर हो गये है तेरी ये लाइन सुन सुनकर। कहेगा कब?’ मैंने कहा।
‘आज बस पक्का है मेरी तरफ से! आने दे, अभी तो स्कूल नहीं आयी है।’
उसका चेहरा एक तरफ उम्मीद और खुशी से झिलमिला रहा था और दूसरी तरफ किसी गहरी चिन्ता से।
थोड़ी देर में प्रीती हमारे सामने से होती हुई क्लास की तरफ चली गयी और समीर उसके पीछे। वो मनोज को भी अपने साथ लेकर गया। मुझे यकीन हो गया कि या तो आज वो कुछ कहकर आयेगा या फिर सुनकर।
प्रीती को देखकर हमेशा ही ये लगा कि वो मुझे देखती थी। मैंने बात कभी समीर को नहीं बतायी। थोड़ी देर मे उसे खुद ही पता चलने वाला था।
कुछ दो मिनट में ही समीर हाथ में दूसरा गुलाब लेकर वापस आता दिखायी दिया। कुछ उदास। मनोज उस पर हँस रहा था।
‘क्या हुआ? ये वो फूल तो नहीं है जो तू ले गया था। उसने तुझे दिया क्या?’ मैं हैरान हो गया। समीर का मुँह बना ही रहा लेकिन मनोज मर-मर के हँस रहा था।
‘मैं बता दूँ क्या हुआ वहाँ?’ मनोज ने उसे चिढ़ाते हुए पूछा। समीर ने बिना कुछ कहे बस अपनी नाराज सी नजर फेर ली और रेलिंग पर झुक कर खड़ा हो गया। अब मेरी नजरें मनोज पर थीं।
‘क्या हुआ मनोज?’
‘अरे ये ना फूल लेकर प्रीती के पास गया...’ मनोज ने अभिनय करते हुए शुरू किया। ‘उसकी तरफ हाथ बढ़ाया..... उसने लिया और, और... ये फूल इसे पकड़ा दिया और कहा...’ हँसी ने मनोज को रोक दिया। ‘...उसने कहा कि ये फूल मेरी तरफ से अंश को दे देना और उसे थैंक्स कहना। मैं तो वहीं गिर गया था अंश!’ मनोज वाकई हँसते हँसते जमीन पर बैठ गया।
मैं और मनोज काफी देर तक समीर पर हँसते रहे फिर क्लास में आ गये। उसके बाद सारा दिन प्रीती मुझे देख-देखकर परेशान सी होती रही। उसकी मुस्कुराहटें उस दिन जरूरत से ज्यादा फैलीं हुई थीं मैं कुछ समझ ना सका। सारा दिन मैंने कोशिश की कि समझ सकूँ लेकिन आखिर में मेरे पास एक ही रास्ता बचा, समीर से बात करने का। अब तो वही कुछ बता सकता था।
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