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उपन्यास >> फ्लर्ट

फ्लर्ट

प्रतिमा खनका

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :609
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9562
आईएसबीएन :9781613014950

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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।

दोपहर 3.30 बजे

स्कूल की छुट्टी के बाद हम सब लड़के बास्केट बॉल कम्पाउन्ड में जमा थे। मैंने समीर को वहीं पकड़ा। उसके वही जवाब थे जिनका मुझे डर था।

‘गुलाब लेते हुए तो पूछ रही थी कि ये अंश ने दिया न? बड़ी खुशी थी उसे कि तेरी तरफ से है।’

‘तो?’

‘तो क्या?’ वो झल्ला गया। ‘क्यों कोई लड़की तेरी तरफ से गुलाब का फूल चाहेगी? क्यों वो फूल लेते हुए मुस्कुरायेगी मानों इसी इन्तजार में थी?’

‘मैं समझ नहीं पा रहा समीर।’ हालांकि मुझे कुछ-कुछ समझ तो आ रहा था।

‘वो तुझे पसन्द करती है और क्या?’ मेरी छाती पर एक उँगली टिकाते हुए- ‘और मुझे यकीन है कि तुझे ये पता था लेकिन तूने मुझे नहीं बताया!’

वो थोड़ा नाराज था। मनोज हम दोनों को देख रहा था और हमारी बेहद संगीन सी बात-चीत को सुनने बीच में चला आया।

‘मुझे सिर्फ ये बता कि तूने उसे क्या कहा?’ मुझे समीर की शिकायतों में कोई दिलचस्पी नहीं थी।

‘मैंने कहा कि....’

‘तूने कहा कि?’ मैं इन्तजार कर रहा था।

‘मैंने कहा हाँ ये अंश की तरफ से है।’ मैंने अपना सिर पकड़ लिया! ‘ये मेरी इज्जत का सवाल था यार!’ बॉल उछालते हुए वो लड़कों की भीड़ में जा मिला। मनोज दोबारा हँसते हुए जमीन पर बैठ गया लेकिन इस बार उसका निशाना मैं था। उसकी हँसी को कुछ पल देखते हुए मैंने सोचा और फिर समीर के पास गया। उसने बॉल बॉस्केट की तरफ उछालने को हाथ ऊपर किये थे कि मैंने बॉल हाथ में ले ली।

‘तू प्रीती को सब कुछ क्लीयर कर रहा है। कब और कैसे ये तू खुद सोच लेना। ठीक?’

‘मैं कोशिश करूँगा।’

ठीक अगली सुबह।

समीर पार्किंग में अपनी गाड़ी लगा रहा था और मेरे धीमें से कदम क्लास की तरफ बढ रहे थे। उस दिन प्रीती हम सब से पहले आ गयी और अपनी कुछ सहेलियों के साथ ठीक उसी जगह पर खड़ी थी जहाँ हम खड़े होते थे। वो मुझे देखकर फिर मुस्कुराने लगी। अजीब लड़की थी।

जैसे ही समीर मेरे पास आया मैंने उसके कान में कह दिया कि इसी वक्त जाकर उसकी सारी गलतफहमी दूर कर दे।

‘लेकिन....’ समीर कुछ बोलने वाला था।

‘तू कह दे नहीं तो मैं कह दूँगा और तू जानता है कि मुझे तेरी तरह बातें घुमानी नहीं आती।’ मैं तेज कदमों से क्लास की तरफ चल पड़ा। मैं क्लास में अकेला था। उम्मीद कर रहा था कि आज ये मामला खत्म हो ही जायेगा लेकिन समीर फिर एक छोटे से बाक्स के साथ क्लास में दाखिल होता दिखा।

आते ही उसने वो बाक्स मेरी मेज पर रख दिया।

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