उपन्यास >> गंगा और देव गंगा और देवआशीष कुमार
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आज…. प्रेम किया है हमने….
गंगा और देव
उस समय देव की उम्र कुछ आठ बरस की रही होगी, हाँ! मुझे ठीक-ठीक याद आता है....
‘लोग कैसे शादी कर लेते हैं?’ देव बड़े आश्चर्य से मुझसे पूछता।
....आखिर कैसे कोई लड़का किसी लड़की को सारी जिन्दगी झेलता रहता है?.....आखिर कैसे वो उस लड़की को सारी जिन्दगी देख-देख कर भी बोर नहीं होता? …. आखिर कैसे वो उस लड़की के साथ पूरी जिन्दगी काट देता है? .... वो बड़ी बेचैनी से मुझसे पूछता था जब पड़ोस में किसी लड़के की शादी होती थी और नई वधू का घर में प्रवेश होता था...
‘इस बात का जवाब तो इस वक्त मेरे पास नहीं देव! इसका जवाब तो समय के पास ही है!’ मैं उसे समझाता था।
‘नहीं! नहीं! मुझे आज ही! अभी ही जवाब चाहिए’ वो जिद करता था और मेरा जीना हराम कर देता था।
‘ठीक है! अगर तू सुनना ही चाहता है तो सुन ले!’ मैं भारी शब्दों में कहता था..... शादी करने के बाद कोई लड़का किसी लड़की का वही चेहरा सारी जिन्दगी... सारी सुबह-शाम देख-देख कर भी बोर नहीं होता क्योंकि उसे उस लड़की से... प्यार हो जाता है!’ मैंने उसे बता ही दिया।
‘ये प्यार क्या होता है? ये क्या चीज होती है? ये कैसे होता है? कैसे पता चलता है कि अब प्यार हो गया है? क्या मुझे भी कभी किसी से प्यार होगा?’ देव मुझसे फिर से जिज्ञासु होकर पूछता था।
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