उपन्यास >> गंगा और देव गंगा और देवआशीष कुमार
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आज…. प्रेम किया है हमने….
‘कोई तो जरूर होगी जो तुझे अपनी नजरों में बाँध लेगी! कोई तो जरूर होगी जो तेरी ही तरह चंचल होगी! तेरी ही तरह नटखट होगी!....
.....उससे मिलते ही तुझे अजीब सा अहसास होगा! जैसे वो बस तेरे लिए ही बनी हो! जैसे मछली को तैरने के लिए समुन्दर मिल गया! जैसे चिडि़या को उड़ने के लिए खुला आसमान मिल गया! जैसे घोड़े को दौड़ने के लिए विशाल मैदान मिल गया हो! ....उससे मिलते ही तेरे मन में संगीत बचने लगेगा।
‘तू उससे बात करना चाहेगा! तू उसे हँसते हुए देखना चाहेगा! उसकी हर-ऐक अदा पर तू मर मिटेगा!..... तू बिल्कुल दीवाना सा हो जाएगा.... और तुझे उससे... प्यार हो जाएगा!’ मैं उसे समझाता था।
....वो अगर हॅसेगी तू तो हॅसेगा! वो अगर रोएगी तो तू रोऐगा ... वो जब साँस लेगी तो तुझे भी साँस आएगी! वो ही तेरा आईना होगी देव! उसे ही देखकर तुझे अपने होने का एहसास होगा, अपनी सम्पूर्णता का एहसास होगा.... देव!
उसे देखते ही तेरे अन्दर जान आ जाएगी जैसे किसी ने तेरे अन्दर प्राण फूँक दिये हों और अगर किसी दिन उसे कुछ हुआ तो तेरा वजूद भी हमेशा-हमेशा के लिए मिट जाएगा!’ मुझे यह सब बताते हुए डर लगता था, भय का आभास होता था, दिल काँप उठता था, मेरे रोंगटे खड़े हो जाते थे पर सच्चाई तो देव को बतानी ही थी।
‘पर आखिर ऐसी कौन ही लड़की होगी जिसका मुझ पर इतना गहरा असर होगा?’ वह आश्चर्य से अपनी आँखें बड़ी कर मुझसे पूछता।
वो होगी... तेरे पिछले जन्म की संगिनी! .....एक लड़की, जिससे होगा तेरे पिछले जन्म का रिश्ता!’ मैंने ये बात काफी सोच-विचार कर कही थी।
मुझे पूर्वाभास हो गया था इस घटना का ! मैंने जाना...
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