लोगों की राय

उपन्यास >> गंगा और देव

गंगा और देव

आशीष कुमार

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :407
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9563
आईएसबीएन :9781613015872

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

184 पाठक हैं

आज…. प्रेम किया है हमने….


‘‘मैं तो तुझे बिल्कुल घोंचू समझती थी‘‘ मामी को आश्चर्य हुआ।

‘‘अच्छा ये तो बता कि गंगा की चाल-ढाल कैसी है?’’ मामी ने जानना चाहा।

‘‘थोड़ा आगे झुककर चलती है!‘‘ देव ने बताया।

मामी ने सुना।

‘‘क्यों? ‘‘ मामी ने प्रश्न किया। वो जानना चाहती थी कि आखिर आगे की ओर झुककर क्यों चलती है।

‘‘....वो कमजोरी बहुत है ना! डाक्टर ने टाँनिक-वानिक लिखे है। वही पी रही है आजकल‘‘ देव ने बताया।

’’हाय! हाय! देव! जवानी में ये हाल है तो बुढापे में क्या होगा?’’ जैसे मामी टाँनिक वाली बात सुनकर चिंता में डूब गई।

कुछ क्षणों के लिए वो सोच में पड़ गई...

‘‘अच्छा ये तो बता कि गंगा देखने में कैसी लगती है?‘‘ मामी ने बड़े मन से पूछा। वो गंगा को बिल्कुल साक्षात देखना चाहती थी।

‘‘....बिल्कुल लड़का!‘‘ देव तुरन्त बोला।

‘‘क्यों?‘‘ मामी ने पूछा। वो ये बात कुछ समझ नहीं पायी।

‘‘ऊपर तो कुछ है ही नहीं!‘‘ देव के मुँह से निकल पडा।

‘‘हाँ! हाँ! हाँ! ....हाँ! हाँ! हाँ!‘‘ गीता मामी ने अपनी हँसी रोकने की बड़ी कोशिश की पर रोक न सकी।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

लोगों की राय

No reviews for this book