उपन्यास >> गंगा और देव गंगा और देवआशीष कुमार
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आज…. प्रेम किया है हमने….
मामी जान गयी कि गंगा के पास नारी सौंदर्य के नाम पर वक्षस्थल नाम की कोई चीज नहीं, करीना कपूर की तरह जीरो साइज है या उससे भी कम माइनस में। मैंने पाया....
‘‘बिल्ली की तरह लम्बे 2 नाखून हैं!‘‘ देव ने बताया।
‘‘एक बार तो बातो ही बातों में गायत्री के लग गया था, खूब खून ही खून निकला!‘‘ देव ने आँखें बड़ी करते हुए बताया।
मामी ने सुना। उन्हें काफी आश्चर्य हुआ। साथ ही वो थोड़ी घबरा भी गईं।
‘‘उसे गुस्सा बहुत आता है, अपनी अम्मा से भी खूब लड़ती है!
‘‘एक बार तो गुस्से में आलू काटते 2 गंगा ने अपनी उँगली ही काट ली थी!
‘‘फिर उसके बाबू को पूरे एक हजार की मरहम-पट्टी करानी पड़ी!‘‘ देव ने बताया।
‘‘हाय हाय देव!... ये कैसी लड़की से प्यार करता है तू?‘‘ जैसे मामी को देव की चिन्ता सताने लगी।
‘‘नहीं! नहीं! मुझे कोई गुस्से वाली लड़की नहीं चाहिए! मुझे तो एक सीधी-साधी लड़की चाहिए तो अपनी बहू के रूप में!‘‘ मामी ने इच्छा व्यक्त की।
‘‘अब क्या करें मामी! दिल लगा गधी से, तो परी क्या चीज है वाली बात है।
मुझे गंगा से प्यार हो गया.....प्रेम हो गया! मुहब्बत हो गई, चाहत हो गई।
गंगा में ही मुझे अपना भगवान दिख गया!‘‘ देव ने एक बार फिर से बड़ा बेचारा सा मुँह बनाया।
मामी ने सुना। मैंने देखा...
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