उपन्यास >> गंगा और देव गंगा और देवआशीष कुमार
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आज…. प्रेम किया है हमने….
पर ये क्या? अपना सेन्टीमेंटल देव गंगा को समझाते-समझाते एक बार फिर से भावुक को उठा। देव की आँखें एक बार फिर से नम हो गई। वो झिलमिलाने लगीं।
‘‘गंगा हमसे प्रोमिस करो कि हमें कभी धोखा नहीं दोगी‘‘ देव ने गंगा ने वचन माँगा।
‘‘देदेदेदे .......वववववव! हम तूका कभ्भों धोखा न देब। हम तोसे शादी करब! पक्का! बिल्कुल पक्का! हमार दुकान के कसम!‘‘ गंगा ने वचन दिया।
‘‘हा! हा! हा!‘‘ देव मुस्करा उठा
‘गंगईया तुम्हारी इस कसम वाली बात पर एक गाना याद आया है, सुनने को मन है?’’ देव ने पूछा।
‘‘हाँ! हाँ!’’ गंगा ने सिर हिलाया....
मुहब्बत से ज्यादा ...
मुहब्बत है तुमसे.....
कि रब जानता है.....
कसम से! कसम से!
तुम्हें चाहता हूँ मैं ...
चाहत से ज्यादा...
कि रब जानता है.....
कसम से! कसम से!
देव ने झट से गाने के कुछ बोल लिखे और गंगा को दिखाये। गंगा का चेहरा सूरज की तरह चमकने लगा।
कुछ समय बाद प्रोफेसर का लेक्चर खत्म हुआ। क्लास ओवर हुई। मैंने देखा....
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