उपन्यास >> गंगा और देव गंगा और देवआशीष कुमार
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आज…. प्रेम किया है हमने….
रुकमणि की फ्रिक
इसी दौरान गंगा की माँ रुकमणि ने अपना माँ वाला रोल निभाया और अपनी बड़ी होती बेटी को कुछ काम की बातें बतायी.....
‘बिटिया! तोसे कुछ जरूरी चीज बतुवाऐक है!’ रुकमणि बोली।
वो लम्बी-चौड़ी, मोटी-तगड़ी एक शुद्ध भारतीय महिला थी बिल्कुल देव की माँ सावित्री की तरह। बस फर्क सिर्फ इतना था कि सावित्री पढ़ी-लिखी एम0 ए0 पास थी, वहीं गंगा की माँ अनपढ़।
वो कानों में चाँदी की बड़ी-बड़ी झुमकियाँ पहननती थी जिसमें नीचे की ओर गोलाकार रूप में अनेक घुँघरू लगे थे जो उसके चलने पर आवाज करते थे। चाँदी की सफेद झुमकियाँ तो दूर से ही चमकती थीं।
रुकमणि हमेशा कुमकुम की एक बड़ी सी बिन्दी लगाती थी। वो हमेशा लाल रंग की साड़ी पहननती थी और हाथों में नीले रंग की चूडि़याँ। इस प्रकार उसका पहनावा काफी भड़कीला था बिल्कुल वैसा जैसा रानीगंज के हलवाईयों में होता है।
रानीगंज में हलवाईयों की स्त्रियाँ कुछ ज्यादा ही मेकअप और क्रीम-पाउडर लगाती हैं जो साधारण स्तर से कुछ ज्यादा होता है देव ने ये पाया था। पता नहीं वे इतना भारी श्रृंगार क्यों करती हैं। शायद वे अशिक्षित और अनपढ़ होती है। अगर वे पढ़ी-लिखी होतीं तो पुस्तकें, कहानियाँ पढ़ कर अपना जी बहला सकती थीं या सूबे की राजनीति के बारे में चर्चा कर सकती थीं। पर अनपढ़ होने के कारण शायद उसके पास विनोद और समय काटने का कोई साधन नहीं होता था। इसलिए वे अपना पूरा जीवन अपनी मिठाईयाँ बनाते हुए और श्रृंगार करते हुए ही बिताती थी।
पर ये बात अच्छी थी कि उनके हाथों की बनी हुई मिठीईयाँ लोग खरीदकर ले जाते थे, त्योहारों में, खुशी के मौके पर पहले भगवान को चढ़ाते थे फिर स्वयं खाते थे। इस प्रकार उनके द्वारा लोगों के बीच में शुभता का प्रसार होता था। इसके लिए वे अप्रत्यक्ष रूप से उत्तरदायी थी। मैंने पड़ताल की....
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