उपन्यास >> गंगा और देव गंगा और देवआशीष कुमार
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आज…. प्रेम किया है हमने….
रुकमणि भी साँवले रंग की और गोल चेहरे वाली थी। गंगा को देखकर कोई भी अंधा भी बता सकता था कि गंगा सौ प्रतिशत रुकमणि की ही बेटी है। रुकमणि के फूले-फूले गालों पर दोनों ओर लाल रंग की झाँइयाँ पड़ी हुई थी, शायद पूरे-पूरे दिन आग के पास बैठकर मिठाईयाँ व अन्य खाद्य पदार्थ बनाने के कारण ऐसा हुआ हो। मैंने अन्दाजा लगाया...
‘‘बिटिया! कालेज तो जात हो! मगर हुआँ किसी लड़के से बोलना नाहीं!‘‘
‘‘हम तो कहित है देखना भी नाहीं!‘‘ रुकमणि बोली।
गंगा रुकमणि की बात सुन चौंक गई। गंगा ने अभी तक देव के बारे में अपने परंपरावादी और रूढि़वादी परिवार में कोई जिक्र नहीं किया था। गंगा जहाँ एक ओर देव से प्यार जरूर करती थी, वहीं अपने हमेशा गंभीर रहने वाले बाबू से डरती भी बहुत थी। मैंने जाना...
‘‘काहे? इ काहे अम्मा?‘‘ गंगा ने अपनी माँ से प्रश्न किया।
रुकमणि ने खुल्लम-खुल्ला गंगा के कान में ढेर सारी बातें बतायीं। किस प्रकार आजकल के लड़के लड़कियों को बहलाते-फुसलाते हैं, उन्हें शादी का झाँसा देते हैं, उनसे शारीरिक सम्बन्ध बनाते है, लड़कियाँ प्रेगनेन्ट होती है, फिर एर्बोशन के लिए अस्पतालों के चक्कर लगाती हैं। इस प्रकार दुनिया भर की बातें रुकमणि ने अपनी कम अकल की बेटी ‘गंगा‘ को बतायीं।
‘‘हाय दइया!‘‘ गंगा के मुँह से निकल पड़ा।
गंगा का मन अब आशंकित हो उठा। तरह-तरह की बड़ी-बड़ी गलतफहमियाँ अब गंगा के मन में बड़ी तेजी से पनपने लगीं। मैंने देखा....
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