उपन्यास >> गंगा और देव गंगा और देवआशीष कुमार
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आज…. प्रेम किया है हमने….
गायत्री गंगा के घर गई उसे समझाने कि गंगा के लिए देव का प्रेम कोई ढोंग नहीं, कोई दिखावा नहीं बल्कि सच्चा प्रेम है, पर गंगा ने अपनी मूर्खता, अज्ञानता और अपने हमेशा वाले झगड़ेंलू स्वभाव के कारण गायत्री का ही घोर अपमान कर दिया, उसे ही भला-बुरा कह डाला।
देव ने सारी बात सुनी। उसे गंगा पर बहुत गुस्सा आया।
‘‘देव! अब मैं कभी उसकी शक्ल भी नहीं देखूँगी!‘‘ गायत्री ने दृढ़ निश्चय किया जैसे कोई कठोर संकल्प लिया। ये शब्द कहते हुए उसके गले की खड़ी हड्डियाँ एक बार ऊपर आकर चमकीं। उसने ये शब्द भारी आवाज में कहे। साथ ही उसकी छोटी-छोटी आँखो में आँसू भर आए।
‘‘देव! अगर मुझसे दोस्ती रखना चाहते हो तो आज के बाद मेरे सामने कभी गंगा का नाम भी न लेना!‘‘ गायत्री ने रोआँसे होकर कहा लेकिन कठोर शब्दों में अपनी बाऐं हाथ की उँगली से अपने आँसू पोछते हुए।
‘‘देव! गंगा को भूल जाओ!‘‘ अब गायत्री ने पुनः शांत होकर अपने हमेशा की तरह श्रीदेवी वाले अच्छे रुप मे आकर कहा-
‘‘अब! जो नई लड़की तुम्हारे जीवन में आएगी वो गंगा से कहीं ज्यादा रूपवान और गुणवान होगी‘‘ जैसे गायत्री ने भविष्यवाणी की।
देव ने गायत्री की सारी बातें ध्यानपूर्वक सुनीं।
पर ये गधा तो इस गधी ये सचमुच वाला प्यार कर बैठा है! ...फिर कैसे कोई दिव्य नारी प्रवेश करेगी देव के जीवन में। मैंने सोचा। मेरे सिर में दर्द होने लगा। मैनें महसूस किया....
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