उपन्यास >> गंगा और देव गंगा और देवआशीष कुमार
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आज…. प्रेम किया है हमने….
‘‘अरे! नहीं! नहीं! आँन्टी बिल्कुल भी नहीं!’ गायत्री बोली।
‘‘गंगा बिल्कुल भी सुंदर नहीं है!‘‘ गायत्री ने सावित्री को बताया बिलकुल स्पष्ट रूप से ‘‘नाक तो उसकी चिपटी-चिपटी है! जैसे किसी ने चिमटे से दबा दी हो! ऊपर से एक नम्बर की लड़ाका है! बात-बात में सैंडल उतार के मारने की बात करती है! कोई गधा ही होगा जो उससे शादी करेगा!‘‘ गायत्री ने बताया।
‘‘अच्छा!‘‘ ये सुन सावित्री को बड़ा आश्चर्य हुआ।
‘‘तो क्या वो पढ़ने में बहुत होशियार है जो देव उसे इतना पसन्द करता है?‘‘ फिर सावित्री ने पूछा।
‘‘अरे! नहीं! नहीं! आँन्टी! वो तो बिल्कुल गधी है। हमेशा नकल करके पास हुई है। हम लोगों की बीएड की क्लास में सबसे ज्यादा देव होशियार है... फिर देव के बाद मैं!‘‘ फिर गायत्री तुरन्त बोली।
‘‘आँन्टी! मैं तो आज तक ये समझ ही नहीं पायी कि आखिर कौन सी खूबी देखकर देव को गंगा से प्यार हो गया?‘‘ जैसे गायत्री भी सोच में पड़ गयी।
‘‘हाँ!‘‘ सावित्री ने सुना ध्यानपूर्वक।
‘‘गायत्री! बेटी! तुम देव को क्यों नहीं समझाती? तुम्हारी बात तो वो हमेशा ही सुनता है? आज तक उसने तुम्हारी कोई बात टाली है क्या?‘‘ जैसे सावित्री ने गायत्री से फरियाद की।
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