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उपन्यास >> गंगा और देव

गंगा और देव

आशीष कुमार

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :407
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9563
आईएसबीएन :9781613015872

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आज…. प्रेम किया है हमने….


तुमने मेरा अण्डरवियर धोया?

अब तो हद ही हो गयी है गुड़िया!‘‘ देव को बहुत गुस्सा आ गया था।

‘‘तुमने मेरे कपड़े धोऐ मैनें कुछ नहीं कहा‘‘

‘‘तुमने मेरे लिए खाना बनाया, मैंने कुछ नहीं कहा‘‘

पर आज तुमने मेरा अण्डरवियर धो दिया, तुम्हारी हिम्मत कैसे पड़ी?

देव ने जमकर गुड़िया को खरी-खोटी सुनायी। गुड़िया सावित्री के कमरे में भाग गई। दरवाजा बन्द कर खूब रोई। उस रात गुड़िया ने खाना भी नहीं खाया। मैंने देखा....

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अगला दिन।

सुबह हुई। गुड़िया ने उठकर चाय बनाई।

पर ये क्या? गुड़िया नाराज थी। गुड़िया बहुत हँसमुख स्वभाव की थी। वो कोई भी बात बिना हँसे नहीं करती थी। पिछले कई दिनों से सावित्री का ये घर गुड़िया की खिलखिलाती हुई आवाज से गूँज रहा था। पर अब अचानक से सन्नाटा सा छा गया था। गुड़िया नाराज थी। अब सभी लोगों ने जाना। गुड़िया ने चाय बनाकर मामी के बड़े बेटे को दी। खुद रोजाना की तरह देव के लिये चाय लेकर नहीं आई।

‘‘गुड़िया कहाँ है?‘‘ देव ने चाय लेते हुए पूछा।

‘‘गुड़िया कह रही है कि अब मैं ही चाय लेकर आऊँगा!‘‘ रमन बोला।

‘‘अच्छा तू जा!‘‘ देव ने चाय पी

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