उपन्यास >> गंगा और देव गंगा और देवआशीष कुमार
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आज…. प्रेम किया है हमने….
‘‘तुम्हें कोई भी लड़का देखते ही शादी के लिए हाँ कर देगा!‘‘ देव ने कहा।
‘‘मैं जिससे प्यार करता हूँ... वो तो तुम्हारे सामने बिल्कुल जीरो है!‘‘
वो बहुत चिड़चिड़े और रूखे स्वभाव की है‘‘ देव ने गंगा के बारे में बताया।
‘‘पर बात को समझो गुड़िया!‘‘ देव ने कहा जोर देकर।
‘‘गंगा के बेरुखे स्वभाव के बावजूद हमें गंगा के अन्दर ही अपना भगवान दिखाई देता है!‘‘ देव ने समझाते हुए कहा।
गुड़िया ने सुना। उसे बड़ा आश्चर्य हुआ। तुरन्त ही गुड़िया का गुस्सा गायब हो गया। मैंने देखा....
‘‘भगवान दिखाई देता है?‘‘ गुड़िया को भी आश्चर्य हुआ।
‘‘हाँ! यही तो लफड़े वाली बात है!‘‘ देव से सिर हिलाया।
‘‘क्या इससे पहले तुम्हें किसी और में भगवान दिखा?‘‘ गुड़िया ने इसे मजाक समझा।
‘‘गुड़िया!‘‘ देव को गुस्सा आ गया।
‘‘मैं मजाक नहीं कर रहा हूँ! मैं 27 का हूँ, पूरी दुनिया घूम चुका हूँ... पर इससे पहले मुझे किसी में अपना भगवान नहीं दिखा। ये पहली बार है!‘‘ देव ने समझाया।
गुड़िया ने सुना। वो जबरदस्त कनफ्यूज हो गई। मैंने देखा....
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