उपन्यास >> गंगा और देव गंगा और देवआशीष कुमार
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आज…. प्रेम किया है हमने….
‘‘हमारे नर्स वाले कोर्स मे तो यही सिखाते हैं कि घाव पर मरहम पट्टी कैसे की जाए? आपरेशन मे पहले मरीज को कितनी मात्रा मे एनीसथीसिया दी जाये? यही सब पढ़ती हूँ.पर देव तुम्हारा मामला तो बिल्कुल हट के है!‘‘ गुड़िया सोच विचार करते हुए बोली।
‘‘गुड़िया! हर समय, हर जगह... चाहे मैं जहाँ भी जाऊँ, जहाँ भी रहूँ... उसका चेहरा मेरी आँखों के सामने रहता है.... मैं खुद इस बात से बड़ा परेशान हूँ!‘‘ देव बोला।
‘‘गंगा मेरे प्यार को गलत वाला प्यार मान बैठी है‘‘ देव ने सारी बात बताई गुड़िया ने सारी बात सुनी गंभीरतापूर्वक।
‘‘तो अब क्या करोगे.....देव?‘‘ गुड़िया ने पूछा।
‘‘इन्तजार, तपस्या और भगवान की पूजा!‘‘ देव बोला।
‘‘इट मे हेल्प यू!‘‘ गुड़िया ने उम्मीद जताई।
कुछ दिनों बाद गुड़िया ने ट्रेन का टिकट कटाया और कानपुर चली गई। जाते समय उसने देव को एक लेटर जिसमें लिखा था...
‘‘देव! यू आर ए नाईस पर्सन एण्ड यू हैव ए गोल्डन हार्ट! मतलब देव एक अच्छा इंसान है और उसका दिल सोने का है। मैंने जाना....
देव ने गंगा का प्रेम जीतने के लिए शिव की पूजा शुरू कर दी पूरी लगन, श्रद्धा और समर्पण भाव से। देव अपने हाथों से फूल चुनकर लाने लगा। उनकी माला अपने हाथों से बनाकर शिव को अर्पित करने लगा। शिवलिंग पर सरसों के तेल के दिये जलाने लगा। जो देव पहले आराम दायक जूते पहनता था अब वो नंगे पैर ही रहने लगा। देव के कोमल पैरों पर कंकड़, पत्थर और तरह-तरह के काँटे, खूब दर्द होता। पर यही दर्द ही वो तपस्या थी जो वो गंगा के प्रेम को जीतने के लिए कर रहा था। जिससे शिव प्रसन्न हों और गंगा देव के सच्चे प्यार को पहचाने। मैंने जाना.....
और अब सारे घर के लोगों ने भी।
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