उपन्यास >> गंगा और देव गंगा और देवआशीष कुमार
|
7 पाठकों को प्रिय 184 पाठक हैं |
आज…. प्रेम किया है हमने….
कजरीतीज
‘‘टिन! टिन! टिन! टिन!‘‘ फोन ने आवाज की।
‘‘हैलो?‘‘ सावित्री ने पूछा अपनी आँखे बन्द किये हुऐ ही। अभी चारों ओर अँधेरा था। अभी सुबह होने में काफी देर थी।
‘‘आँन्टी!.....मैं गायत्री!‘‘ गायत्री बोली दूसरी तरफ से।
‘‘गायत्री!.... इतनी जल्दी फोन किया... सब ठीक तो है?‘‘ सावित्री ने पूछा जब पाया कि अभी तो पाँच भी नहीं बजे है।
‘‘सब ठीक है आँन्टी पर अभी देव से बात करनी है!‘‘ गायत्री ने बड़ी हड़बड़ी में कहा।
‘‘पर बेटा! वो तो अभी सो रहा है!‘‘
‘‘....तो उसे जगाओ आँन्टी! ...बहुत जरूरी है!‘‘ गायत्री बोली।
‘‘हैलो गायत्री!‘‘ देव लाइन पर आया।
‘‘इतनी जल्दी फोन किया... क्या कोई एमरजेंसी है?‘‘ देव ने पूछा।
‘‘हाँ! समझ लीजिए कि एमरजेंसी ही है‘‘ गायत्री बोली।
‘‘हाँ! हाँ‘‘ देव ने सिर हिलाया।
‘‘देव! क्या आप कुँवारे हैं?‘‘ गायत्री ने अचानक से पूछा।
‘‘अरे! अरे! श्रीदेवी को ये आज क्या हो गया है?‘‘ मैंने सोचा। जो गायत्री बहुत अधिक शमीर्ली है, बिल्कुल देव की फोटोकाँपी, वो तो बिल्कुल प्वाइन्ट वाली बात कर रही है‘‘ मुझे काफी आश्चर्य हुआ ये पाकर....
देव थोड़ा शर्मा गया। देव की सारी नींद उड़ गयी ये सवाल सुनकर। मैंने देखा....
|