उपन्यास >> गंगा और देव गंगा और देवआशीष कुमार
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आज…. प्रेम किया है हमने….
‘‘पार्वती के पिता राजा हिमालय और माँ मैंना व अन्य लोगों ने पार्वती को बहुत समझाया कि शिव से विवाह तो नामुमकिन है... बिल्कुल असम्भव सी बात है, पर पार्वती ने किसी की एक ना सुनी!‘‘ गायत्री ने बताया...
हाँ! हाँ!.... फिर क्या हुआ?‘‘ देव ने पूछा बड़ी जिज्ञासा से।
‘‘फिर पार्वती ने कठोर तपस्या की और भगवान शिव को प्रसन्न किया.... और अन्त में शिव से विवाह करने में सफलता पाई!‘‘ गायत्री ने देव को बताया।
‘‘हाँ! हाँ!‘‘ देव ने पूरी बात सुनी
‘‘देव! लोककथाओं के अनुसार.... कजरीतीज के दिन पार्वती ने निर्जल व्रत रख शिव की पूजा की थी। फिर पार्वती के विवाह के उपरान्त ऐसी मान्यता है कि कुँवारी कन्याएँ या कुँवारे युवक कजरीतीज का व्रत रखकर मनचाहा वर या कन्या को पति-पत्नी रूप में प्राप्त कर सकते हैं!‘‘ गायत्री बोली।
‘‘अच्छा!‘‘ देव को आश्चर्य हुआ ये बात जानकर।
‘‘देव! इस प्रकार तुम भी व्रत रखो!... शिव प्रसन्न हो जाएंगे.... गंगा तुम्हारे प्यार को पहचान लेगी!.. आपसे शादी कर लेगी.... देव!‘‘ गायत्री ने विश्वास दिलाया। वो बड़े जोश में बोली।
‘‘क्या सच में?‘‘ जैसे देव को विश्वास ही नहीं हो रहा था गायत्री के कहे पर।
‘‘हाँ! हाँ!....पर शर्त है कि ये व्रत बिना पानी के रखा जाता है‘‘ गायत्री ने बाधा बताई। देव ने सुना।
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