उपन्यास >> गंगा और देव गंगा और देवआशीष कुमार
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आज…. प्रेम किया है हमने….
‘‘क्या आप बिना पानी पिये ये व्रत रह लेंगें?‘‘ गायत्री ने पूछा।
‘‘आज तक कभी बिना पानी के कोई व्रत रहा तो नहीं हूँ पर इस बार देखता हूँ‘‘ देव बोला।
‘‘तो ठीक है... अभी जितना पानी पीना है पी लीजिऐ! आधे घण्टें मे सूर्योदय होगा ....और शाम को 6:45 पर सूर्यास्त!... उसके बाद ही पानी पीना है आपको!‘‘ गात्रयी ने समझाया।
‘‘ठीक है!‘‘ देव ने सबकुछ अच्छी तरह समझ लिया।
देव ने व्रत शुरू किया। सुबह के 11 बजे। देव का गला बड़ी जोर से सूख रहा था पर देव ने किसी तरह खुद को रोका।
फिर... दोपहर के 2 बजे। देव को बड़ी जोर की भूख लगी, पर फिर भी देव ने खुद को किसी तरह रोका। फिर... शाम के 4 बजे। देव का गला बहुत तेज सूख रहा था। देव का मन हुआ कि पानी की एक घूँट पी ली जाये।
‘‘नहीं! नहीं! देव! तुमने एक घूँट पानी पिया और तुम्हारी सारी मेहनत, सारी तपस्या जो तुम इतने दिनों से करते आ रहे हो सब बेकार हो जाएगा!‘‘ मैंने देव को सावधान किया....
‘‘कम अकल वाली गंगा तुम्हारे प्यार को नहीं पहचानेगी!‘‘ मैंने देव से कहा....
‘‘इसलिए ये व्रत किसी तरह पूरा करो!‘‘ मैंने देव से कहा....
देव से मुझे ध्यानपूर्वक सुना। फिर इंतजार करते-करते किसी प्रकार सूर्यास्त हुआ। देव शिवालय गया। शिव की पूजा की। और गंगा को माँगा अपनी पत्नी रूप में। मैंने देखा....
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