उपन्यास >> गंगा और देव गंगा और देवआशीष कुमार
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आज…. प्रेम किया है हमने….
‘‘तुम्हारे इस प्यार-व्यार ...प्रेम-व्रेम के चक्कर में पड़कर आज सारी दुनिया हँसती है हम पर!‘‘ देव बोला। हमेशा हँसमुख रहने वाला देव आज गंभीर था .....बहुत-बहुत दुखी और गंभीर। मैंने गौर किया....
‘‘शिव! आज के बाद... कभी किसी को प्यार मत देना! प्रेम मत देना... क्योंकि अगर वो पूरा न हुआ तो लोग तुम्हारी पूजा करना बन्द कर देंगें!‘‘ जैसे देव ने महादेव को चुनौती दे दी थी... उन्हें ललकार दिया था....
समस्त संसार में जैसा प्रेम भगवान शिव ने अपनी पत्नी सती और पार्वती से किया था, वैसा प्रेम आज तक कभी ने किसी से नहीं किया। ये प्रेम अतुलनीय था। प्रथम जन्म में जब शिव का विवाह सती से हुआ और जब उन्हें ज्ञात हुआ कि सती ने हवनकुंड में कूदकर अपने प्राण त्याग दिये तो भगवान होते हुए भी शिव ने सुध-बुध खो दी थी। सती के प्रेम-वियोग शिव जंगल-जंगल, पहाड़-पहाड़, पर्वत-पर्वत घूमने लगे।
फिर अगले जन्म में शिव का विवाह पार्वती से हुआ। उसके पश्चात ही सभी मनुष्य, सभी गृहस्थ लोग भगवान शंकर और देवी पार्वती की उपासना करते हैं जिससे पति-पत्नी के बीच सदैव प्रेम बना रहे। क्योंकि यदि पति-पत्नी के बीच प्यार समाप्त हो गया तो परिवार की संकल्पना समाप्त हो जाएगी। बच्चों व शिशुओं के लालन-पालन पर प्रश्न चिन्ह लग जाएगा। पति-पत्नी दोंनों ही अपनें कर्तव्यों से विमुख हो जाएंगें। मैंने जाना....
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‘‘अगर गंगा ने हमारे प्यार को न पहचाना, हमसे विवाह न किया और हमें छोड़ दिया तो समझ लेना कि हमने भी तुम्हें हमेशा-हमेशा के लिए छोड़ दिया!‘‘ हमेशा मृदुल वाणी में बोलने वाला देव आज कठोर होकर बोला वो भी चिल्लाकर।
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